प्रेम
प्राकृति का एक सुंदर रूप है,
जीवन,
प्राकृति में व्याप्त सबसे सुंदर सत्य है,
करुणा
प्राकृति की सांसे है,
और
पुरुष है,
प्रकृति को गति दे देने वाला ऊष्मा,
एक ऐसी ऊष्मा,
जो आवश्यक है सांसों को गर्म करने के लिए,
हथेलियों को, नर्म करने लिए ,
ह्रदय के स्पंदन के लिए,
स्वरों में कंदन के लिए,
जीवन में अभिनंद के लिए,
पर मेरे लिए...
प्रेम, प्रकृति और पुरूष सब तुम ही हो....
अर्थात मैं जीवन पर आशंका
और प्रेम में हिंसा नहीं कर सकती,
प्रेम है,
पर मोह नहीं, अविवेक नही,
तुम्हे स्वयं में बांध लेने को इच्छा नही करती
तुम गति हो ,
बस मैं चाहती हूं,
तुम्हारी गति का वेग बनना
तुम जब भी बंधना चाहों ,
मुक्ति बनू ,
बस मैं प्रेम बनू....
बस प्रेम.....।।
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