शमायें बुझा दी
कुछ लोगों ने
हमारी राहों में
और हम अंधेरे में
और चमक उठे।
साजिशें थी उनकी
नाकाफी हमे
गिराने में
हर बार गिरे
हम मगर गिर
कर फिर उठे।
वो आरज़ू करते रहे
की हम रुक जाएं
थक कर
हमने रुक कर
छाले सहलाए
और फिर चल पड़े।
आख़िर रुकी
उनकी साजिशें
पर हम न रुके
हौसलों की मशाल ले
राहों में बड़ चले।