झूठ बोलते है वो लोग जो कहते है कि, उन्हें कभी प्यार नही हुवा। हम सब को हुवा है, लेकिन,फर्क बस इतना है कि, किसी का पूरा हुवा तो किसीका अधूरा रहा।
कोई नही जानता कब, कैसे, कहा, किस तरह किसी ऐसे इंसान पर दिल आ जाये जिसको हम पहचानते तक नही।
बिल्कुल यही हुवा स्नेहा के साथ, कब इकोनॉमिक्स की किताबी बातें करते करते वो एक ऐसे इंसान के प्यार में पड़ी जिसके साथ उसका आनेवाला कल बेहतरीन होनेवाला था। किताबी बातें, दिली बातों में बदलने वाली थी। जिस सफर पर वो अकेली चल रही थी उस सफर का हमसफ़र उसे मिलने वाला था।
क्या आप स्नेहा के इस प्यार भरे सफर में जुड़ना नही चाहोगे? क्या आप स्नेहा के किरदार में अपनेआपको खोजना नही चाहोगे? गर स्नेहा के किरदार में कही आपको आपका गुज़रा हुवा कल दिखता है तो यकीन करिये प्यार अब भी दिल के किसी कोने में जिंदा है।
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"सफ़रनामा: यादों का एक सुनहरा दौर"