""नारी है क्या ये
कौन समझा यहाँ,
जो समझा इन्हें,
हुआ नतमस्तक यहाँ.
ना मानो तो कुछ भी,
नहीं वो किसी की,
मानो तो वज़ूद है
वो हर इन्सान का यहाँ.
एक माँ है,बहन है
तो एक बेटी भी है,
हर पल निभाती साथ
वो एक पत्नी भी है.
कभी ना छोड़ा साथ
किसी का भी मुश्किल में,
बिना रोशनी के वो
हमारे साथ परछायी सी यहाँ.
कहते हैं कुछ कि समझना
नामुमकिन सा इन्हें,
हम कहते है क्या कभी
कोई खुदा को समझा यहाँ.
इन्सान को देती जिन्दगी
एक खुदा सी है वो यहाँ.
झुक के करता हूँ,
दिल से नमन आप सबको..,
आप सा ना कभी हो पाया
ना कभी हो पायेगा यहाँ..""