है मुसाफ़िर यहां हर एक आदमी,
खुद से ही तो जूझ रहा है आदमी
कोई है सादगी से भरा एक साधु
तो कोई लगता हैवान सा आदमी
जरूरी है जब अनेकता में एकता
तब धर्म-जाति खेल रहा आदमी
आज है आयी मनुष्यता खतरे में
तो इसे और बढ़ा रहा है आदमी
भूल के पुण्य पाप और कर्म को
ख़ुद में भगवान हो रहा आदमी
है मुसाफ़िर यहां हर एक आदमी
खुद से ही तो जूझ रहा है आदमी
-Broken_Feather