Hindi Quote in Poem by Anjali Dharam Dutt Vyas

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#काव्योत्सव

तलाख ,डाइवोर्स,छुट्टाछेड़ा


तुम्हारे लिए बस ये एक नाम था

पर जब ये जिंदगी की हकीकत बन सामने आया तो बिखर सी गयी थी मैं

सासे थम सी गई थी अपने आप में ही सिमट कर रह गई थी

सोचती रह गई के सात जन्मों का यह बन्धन क्यों साथ मेरा निभा न सका|

पहले विश्वास टूटा

फिर खुद को टूटता देखा

आसुओं का सैलाब सा उमडा था जैसे दिल को किसी ने मेरे अपने पैरों तले रौंदा था|

समझ न पाई क्या कसूर था मेरा क्यों टूटा विश्वास मेरा

क्यों खोया विश्वास अपना अभी तो रिश्तें को नीव को रोपा ही था मैंने

फिर क्यों कलियाँ ये मुरझा गई

सहते -सहते थक सी गई थी पर तुमने कभी मुझसे इंसानियत भी न निभाई|

तुम्हें अपना समझ तुम्हारे जीवन में थी आई

पर तुमने थी हैवानियत ही दिखाई, प्यार से जुड़े रिश्ते की तुमने राहें ही जुदा कर दी

भरोसे की जगह मतिभृम को दे दी

समझ न पाई क्यों बीच मझदार में छोड़ इस बंधन की गाँठ को तुमने एक सूत्र में बंधने नहीं दिया|

लोगों की उंगलिया कभी न रुकेगी

अनगिनत निगाहें सदा घूरेंगी तानों और झूठे दिलासों से दुखी करेंगी

जैसे मेरा वजूद बचाना अपराध था मेरा


सब सहकर भी रिश्ते की मर्यादा निभाना पाप था मेरा

कुछ भी समझ न पाई ...

माँ -बाबा की बेटियाँ हैं हम भी

नाजो से पलि पापा की परियां हैं हम भी

किसी के कलेजे का टुकड़ा और घर आँगन की बाग़िया हैं हम भी

कब तक दहेज़ क नाम पर यही जुल्मो सितम ढाते रहोगे

कब तक पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा और संस्कारों के नाम पर शोषण करते रहोगे

कब तक अपनी हवस की खातिर यूँ ही नारी जाती की अस्मत पर आंच आने ही दोगे

कब तक...... आखिर कब तक ....!!!!!

क्यों नहीं कोसती कभी तुम्हे आत्मा तुम्हारी

या मर गई है आत्मा भी तुम्हारी

क्यों नहीं समझती एक औरत को औरत कभी

तुम्हारी माँ-बहिन बेटी भी तो औरत ही है फिर क्यों अब तक ये भेदभाव जारी है

या किसी को खिलौना समझ खेलना बन गई है अब आदत तुम्हारी


अंजलि व्यास

Hindi Poem by Anjali Dharam Dutt Vyas : 111171420
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