#KAVYOTSAV -2
एक यंत्र!!
गाँव के पास वाले शहर से
होने के कारण समाज में सबसे
ज्यादा पढ़ीलिखी थी।
उच्च शिक्षा प्राप्त करके सोचती थी
नौकरी लग जाए,
इस बीच आने लगे बड़े घरों के रिश्तें।
उसने भी सोचा क्या बुरा है
शादी करके ये सब देख लिया जाएगा।
उन अनपढ़ औरतों में
सबसे ज्यादा मान तो उसे ही दिया जाएगा।
सुंदर और सुशिक्षित है वो,
बनकर रहेगी पतिप्रिया।
पति का प्यार था सुर्ख गुलाब
मगर जिसकी पंखुडियां चारदिनों
में ही झड़ गयी।
नजर आने लगे
सामंजस्य न बैठा पाने के शूल।
ऊपर से मनमौजी लड़की की
स्वभाव गत भूल।
पति से मिली ताकीद
घर पर रहकर सब संभालोगी
तो मुझे भाओगी।
यूं भी इतने बड़े घर
में बाहर जाने का तुम वक्त कहाँ पाओगी।
मनमसोस कर
अरमानों की पोटली बांध
उसने छिपाकर रख दी।
खुद को करने लगी तैयार
सुघड़ गृहिणी बनने के लिए।
इस बीच माँ भी बनी,
अकेले और काम के बीच
अपरिपक्वता का कैशोर्य
उसपर अक्सर दिखता।
झल्लाहट से भरी रहती।
धीरे-धीरे आखिर सोते जागते
जपती रहती कामों की माला।
नींद में भी देखती सारे काम
निपटाने के सपने।
हँसना बोलना अब पसंद नहीं था।
जो कभी कहा करती थी कि पुरानी
औरतें मशीन की तरह काम करती थी।
अब वो खुद ही बन चुकी थी एक यंत्र
हाँ दक्ष दिखने के लिए
करती रहती थी खुद पर रंगरोगन।
आजकल आवाजें भी निकालती
है कराहने की सी सी करते हुए।
जैसे मशीन करती है चरचूँ।
और खुद को गुनगुनाती है
एक कर्कश गीत की तरह।
खुद पर है गुमान
उसके पास सब काम निपटाने का मंत्र है।
मगर उसे अहसास ही नहीं
वह खुद एक सुसज्जित यंत्र है।
कविता नागर