# Kavyotsv
कविता - 2
न होते तुम , तो क्या होता ....... !
न होता कहीं सावन , न होता कहीं उपवन
न होता कहीं समर्पण , न होता कहीं आलिंगन
न होती कहीं रुठन , न होती कहीं अड़चन
न होती कहीं अनबन , न होती कहीं मनावन
न खिलते कहीं फूल . न होते कहीं शूल
न होती कहीं अमराई , न मन लेता अंगड़ाई
न बदरा बनते बौझार , न झरना देता फुहार
न कोहरा बनता धुंध , न प्रेमी लिपटते निर्दवन्द
न सपर्श होता कोमल , न जलधार होती निर्मल
न नृत्य करता मयूर , न कोयल गाती भरपूर
न होती कोई आस्था , न मानता कोई प्रेम की व्यथा
न बजती कोई बाँसुरी , छा जाती शक्तियाँ आसुरी .
न प्रकृति करती श्रँगार , न फूट पड़ते उद्गार
न माझी सुनाता मल्हार , न बृह्म होता निराकार .
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
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