#काव्योत्सव
कविता - 1
तुम बिन जीवन कैसे बीते
तुम बिन जीवन कैसे बीते ,
न कोई खुशबू ,न कोई सावन
दिन का उजाला ह्रदय की चुभन
यादों के झरोखे पीड़ा का मंचन ,
तुम संग बीते छण हैं रीते ,
तुम बिन जीवन कैसे बीते .
बदरा आते बदरा जाते ,
बरस - बरस कर तुम्हें जताते .
हरियाली पत्तों पर छाती ,
अंतर्मन में मुझे रुलाती ,
कैसे कोई मन को जीते .
तुम बिन जीवन कैसे बीते
भोर की आरुणी संशय ले आती ,
कोयल की कू-कू भी न भाती ,
नदिया की कल-कल धारा न लूभाती,
भंवरों की गुंजन रूदन में जाती ,
यूँ ही प्रेमी विष को पीते ,
तुम बिन जीवन कैसे बीते .
कविता - 2
न होते तुम , तो क्या होता ....... !
न होता कहीं सावन , न होता कहीं उपवन
न होता कहीं समर्पण , न होता कहीं आलिंगन
न होती कहीं रुठन , न होती कहीं अड़चन
न होती कहीं अनबन , न होती कहीं म
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी-184, श्याम आर्क एक्सटेंशन साहिबाबाद, उत्तरप्रदेश- 201005 Mo. 09911127277