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asmehta225927

શેફલિબેન અને રોહિતભાઈ

mahendra

kishorboricha211525

asmehta225927

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n.d.c1997161111

bhupatvadher

✍️
एक बच्चे ने अपनी मां से पूछा__ आप सब ये कैसे जान जाती हो मां। मां ने कहा___ इसे हृदय, प्यार की भाषा कह सकते हैं।
*कुछ तो हुआ है* एक growing बच्ची____

स्कूल से आते ही बैग फेंकना,
खाने की थाली को देखकर मुंह फुलाना,
जरा सा पुचकारते ही मोटे मोटे आंसुओं का तैर जाना और मेरा कहना, कुछ तो हुआ है।
गले लगकर पूरी कहानी बयां कर जाना,
और कहना,नहीं मां कुछ नहीं.....
लेकिन मां, आप कैसे सब जान जाती हो???
मां मुझसे बेहतर मुझे समझ पाती हो!
पूरा पूरा दिन मोबाइल से चिपके रहना,
रोना, रूठना, मुस्कुराना,
बार-बार कॉल चेक करना,
एक बार फिर मेरा कहना, कुछ तो हुआ है।
फिर से गले लगकर,
मेरे गालों पर एक चुंबन दे कर कहना,
नहीं मां कुछ नहीं.......
लेकिन मां, आप कैसे सब जान जाती हो???
मुझसे बेहतर मुझे समझ पाती हो!
एक दिन अचानक रसोई में मेरा हाथ बटाना,
किसी व्यंजन की रेसिपी पूछना,
और कहना आज खाना मैं बनाऊंगी,
एक बार मेरा फिर से कहना कुछ तो हुआ है....
मेरे कंधे पर मुंह छुपाकर,
हौले से कान में फुसफुसाना,
हां मां, कुछ तो हुआ है...........
आप यह सब कैसे समझ जाती हो???
जो किसी को नहीं दिखता,
वह भी देख पाती हो,
मुझसे बेहतर मुझे समझ पाती हो!
मैं तो एक अंश हूं आपका,
आप ही मुझ में पूर्णता लाती हो!!!!!!!
हां मां आप सब समझ जाती हो!!!!!!!!!

manuvashistha182759

ऐसा नहीं है कि गंभीर साहित्यकार फ़िल्म लेखन में नहीं आना चाहते। उल्टे वे तो चाहते हैं कि उनके लिखे को व्यापक प्रसार मिले।
किन्तु समस्या ये है कि फ़िल्म निर्माण एक तकनीकी प्रक्रिया होने के कारण लेखक की कलम की लोचशीलता, यानी पग पग पर समायोजन चाहती है जबकि साहित्यकार अपने लिखे पर कायम रहना चाहता है।
दूसरे, अधिकांश साहित्यकार लंबी अवधि तक लिख कर ही कामयाब हो पाते हैं, ऐसे में फ़िल्म जगत के युवाओं के बीच वे अपने को वरिष्ठ समझते हैं और अपने से युवा लोगों के सुझाव, सलाह, समझौतों को सहन नहीं कर पाते। यही कारण है कि युवा लेखक फ़िल्मों में ज़्यादा कामयाब हैं चाहे उनकी पैठ साहित्य जगत में उतनी न बन पाई हो।

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