ऐसा नहीं है कि गंभीर साहित्यकार फ़िल्म लेखन में नहीं आना चाहते। उल्टे वे तो चाहते हैं कि उनके लिखे को व्यापक प्रसार मिले।
किन्तु समस्या ये है कि फ़िल्म निर्माण एक तकनीकी प्रक्रिया होने के कारण लेखक की कलम की लोचशीलता, यानी पग पग पर समायोजन चाहती है जबकि साहित्यकार अपने लिखे पर कायम रहना चाहता है।
दूसरे, अधिकांश साहित्यकार लंबी अवधि तक लिख कर ही कामयाब हो पाते हैं, ऐसे में फ़िल्म जगत के युवाओं के बीच वे अपने को वरिष्ठ समझते हैं और अपने से युवा लोगों के सुझाव, सलाह, समझौतों को सहन नहीं कर पाते। यही कारण है कि युवा लेखक फ़िल्मों में ज़्यादा कामयाब हैं चाहे उनकी पैठ साहित्य जगत में उतनी न बन पाई हो।