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"उस पल की ख़ुशबू"
वो कोई पहली बारिश नहीं थी,
पर उसकी आहट कुछ अलग सी थी।
ना कोई वादा, ना कोई नाम,
फिर भी दिल ने कहा — "ये है मेरा मुक़ाम।"
बातें कम थीं, लेकिन ख़ामोशियाँ कहती थीं,
वो जो लिखा न गया, वो ही सबसे सच था।
उसने हाथ थामा कुछ यूँ,
जैसे कोई बीती ज़िंदगी लौट आई हो।
[यह एक छोटी सी कविता है जो मेरी कहानी "“तुम्हारे नाम अब भी धड़कता है" को बयां करती है।]
-शिवांगी विश्वकर्मा
📚✨ कभी दोस्ती ज़हर भी होती है — बस मीठा लिबास ओढ़े होती है।
क्या आपने कभी ऐसा दोस्त झेला है जो हमेशा आपसे लेता रहा—समय, पैसा, भरोसा… और जब आपने ‘ना’ कहा, तो वही आपको सबसे बुरा इंसान बना गया?
तो #Phokatiya आपके लिए है।
यह सिर्फ एक कहानी नहीं, हर उस इंसान की आवाज़ है जिसने रिश्तों में खुद को खोया, मगर फिर खुद को वापस पाया।
👤 राजीव की कहानी उस कड़वे सच को उजागर करती है जिसे हम अक्सर मज़ाक में टाल देते हैं—“फोकट में लेने वाला दोस्त”, जो कभी इमोशनली सपोर्ट नहीं करता, मगर हर वक्त आपके भरोसे को कैश करता है।
📖 इस बुक में आपको मिलेगा:
✅ रिश्तों की असल पहचान
✅ आत्म-सम्मान की ताक़त
✅ “ना” कहना सीखने की हिम्मत
✅ और एक हीरो, जो किसी को हराकर नहीं, खुद को समझकर जीतता है
💥 Best Quote:
“मैंने माफ़ किया, क्योंकि बदला लेकर मैं खुद को फिर से ज़ख्मी नहीं करना चाहता था।”
🎯 अगर आपने कभी toxic दोस्ती का सामना किया है या अभी भी उसमें उलझे हैं — फोकटिया वो आईना है जो आपको अपना असली चेहरा दिखाएगा।
📦 Order now. पढ़िए, सोचिए, और आगे बढ़िए।
#फोकटिया #ToxicFriendships #BookstagramIndia #SelfRespect #EmotionalFreedom #NewBookAlert #PhokatiyaBook #SayNoToFokat #HealingThroughReading
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✨ "मैं अब भी चल रही हूँ..." ✨
कभी टूटी थी खामोशी में,
कभी बिखरी थी भीड़ में,
पर हर बार उठी मैं,
अपने ही इरादों की रीढ़ में।
किस्मत ने मोड़ दिए कई,
कुछ रास्ते अधूरे रह गए,
पर दिल ने हौसले की चादर ओढ़ी,
और सपने फिर से बह गए।
ना कोई मंज़िल साफ़ दिखी,
ना कोई राह आसान थी,
पर मैं रुकी नहीं, थकी नहीं,
बस चलते रहना मेरी पहचान थी।
- शिवांगी विश्वकर्मा
*માટીથી શીખી માણસ બનાય*
એક નાનકડા ગામમાં એક વૃદ્ધ અને જ્ઞાની કુંભાર રહેતો હતો. તેનું નામ હતું મગનલાલ. મગનલાલ માટીમાંથી સુંદર અને ઉપયોગી વસ્તુઓ બનાવવામાં નિપુણ હતા. પરંતુ તેમની કલા પાછળ એક ઊંડો સંઘર્ષ છુપાયેલો હતો, જે તેમણે દરેક માટીના ગુંબડ સાથે અનુભવ્યો હતો.
એક દિવસ, એક યુવાન શિષ્ય રમણ, મગનલાલ પાસે આવ્યો અને પૂછ્યું, "દાદા, તમે આટલી સુંદર વસ્તુઓ કેવી રીતે બનાવો છો? મને પણ શીખવો."
મગનલાલ હસ્યા અને બોલ્યા, "બેટા, આ કલા શીખવા માટે તારે માત્ર ચાકડો ફેરવતા કે માટીને આકાર આપતા શીખવાનું નથી, પણ માટીના સંઘર્ષને સમજવો પડશે."
રમણને આશ્ચર્ય થયું.
મગનલાલે એક માટીનો ગુંબડ લીધો અને ચાકડા પર મૂક્યો. "જો, બેટા," તેમણે કહ્યું, "આ માટી શરૂઆતમાં સખત અને બેડોળ હોય છે. તેને પાણી અને હાથના દબાણનો સંઘર્ષ સહન કરવો પડે છે."
જેમ જેમ મગનલાલ ચાકડો ફેરવતા ગયા અને માટીને ભીંજવતા ગયા, તેમ તેમ તે નરમ પડતી ગઈ. "આ પહેલો સંઘર્ષ છે - નરમ થવાનો સંઘર્ષ. જો માટી નરમ ન થાય, તો તેને ક્યારેય આકાર આપી શકાતો નથી. ઘણીવાર આપણને પણ જીવનમાં નરમ પડવું પડે છે, બદલાવને સ્વીકારવો પડે છે, અને આ એક મોટો સંઘર્ષ હોય છે."
પછી મગનલાલે માટીને ધીમે ધીમે ઉપર ખેંચીને આકાર આપવાનું શરૂ કર્યું. "હવે આ બીજો સંઘર્ષ છે - આકાર લેવાનો સંઘર્ષ. આ સમયે માટી પર દબાણ આવે છે, તેને ખેંચવામાં આવે છે, અને જો તે પ્રતિકાર કરે, તો તૂટી જાય છે. આપણા જીવનમાં પણ જ્યારે આપણે કોઈ નવી વસ્તુ શીખીએ છીએ, કોઈ પડકારનો સામનો કરીએ છીએ, ત્યારે આપણને ઘડાવું પડે છે, અને આ પણ એક સંઘર્ષ છે."
આકાર આપ્યા પછી, મગનલાલે તેને ધીમેથી છરી વડે કાપીને સૂકવવા મૂકી. "અને આ ત્રીજો સંઘર્ષ છે - સૂકવવાનો સંઘર્ષ. જ્યારે માટી સુકાય છે, ત્યારે તે પોતાની અંદર રહેલા પાણીને ગુમાવે છે. આ પ્રક્રિયામાં તે સંકોચાય છે, અને જો યોગ્ય રીતે ન થાય તો તેમાં તિરાડો પડી શકે છે. આપણા જીવનમાં પણ દુઃખ, નિરાશા, અને મુશ્કેલીઓ આપણને અંદરથી સૂકવી નાખે તેવું લાગે છે, પણ આ જ સમયે આપણે વધુ મજબૂત બનીએ છીએ."
છેલ્લે, મગનલાલે વાસણને ભઠ્ઠીમાં મૂક્યું. "અને આ છે સૌથી મોટો સંઘર્ષ - આગમાં તપવાનો સંઘર્ષ. આગની ભયંકર ગરમીમાં માટી તપીને પાકી અને મજબૂત બને છે. જો તે આ ગરમી સહન ન કરી શકે, તો તે કાચી રહી જાય છે કે તૂટી જાય છે. આપણા જીવનના સૌથી મોટા સંઘર્ષો આપણને અગ્નિપરીક્ષામાંથી પસાર કરે છે, અને તે જ આપણને ખરા અર્થમાં મજબૂત અને ટકાઉ બનાવે છે."
વાર્તા પૂરી કરીને મગનલાલે રમણને કહ્યું "જોયું બેટા, દરેક સુંદર વસ્તુ પાછળ સંઘર્ષ છુપાયેલો હોય છે. માટી જેમ સંઘર્ષ કરીને સુંદર વાસણ બને છે, તેમ આપણે પણ સંઘર્ષોનો સામનો કરીને જીવનમાં આગળ વધીએ છીએ અને સારા મનુષ્ય બનીએ છીએ. સંઘર્ષ એ વિનાશ નથી, પણ નિર્માણની પ્રક્રિયા છે."
રમણ, મગનલાલની વાત સમજી ગયો. તેને સમજાયું કે જીવનમાં આવતા સંઘર્ષો એ આપણને તોડવા માટે નહીં, પણ આપણને ઘડવા અને મજબૂત બનાવવા માટે હોય છે.
-
રોનક જોષી 'રાહગીર'.
“तू कहती थी तेरी याद आएगी…”
पर दूरियाँ सिर्फ़ फ़ासले नहीं लातीं, वो दिलों में बेरुख़ी भी भर देती हैं।
जब लफ़्ज़ चुप हो जाएँ और यादें भी थक जाएँ — वहीं से एक अधूरी मोहब्बत की दास्तां शुरू होती है… 💔
#कविता #HindiPoetry #Yaadein #Mohabbat #Dooriyan #EmotionalPoetry #काठगोदाम_की_गर्मियाँ
“तू कहती थी तेरी याद आएगी…”
पर दूरियाँ सिर्फ़ फ़ासले नहीं लातीं, वो दिलों में बेरुख़ी भी भर देती हैं।
जब लफ़्ज़ चुप हो जाएँ और यादें भी थक जाएँ — वहीं से एक अधूरी मोहब्बत की दास्तां शुरू होती है… 💔
#कविता #HindiPoetry #Yaadein #Mohabbat #Dooriyan #EmotionalPoetry #काठगोदाम_की_गर्मियाँ
રમત એ પ્યાદાની ને રાજનીતિની!
મંડી પડે સૌ કોઈ હાજર ત્યાં,
બચાવવા પોતાનાં રાજાને!
કહેવાય એ રમત શતરંજની,
રમાતી આવે સદાકાળથી,
બદલાતાં ગયા રુપ એનાં કાળક્રમે,
પણ ન બદલાયો અભિગમ એનો!
શીખવે આ રમત એકાગ્રતા રાખતાં,
સાથે શીખવી જાય ખેલદિલી!
હાર જીત તો થતી રહે જીવનમાં,
ઉભા રહીએ જીવનનાં મેદાનમાં,
બચાવવા પોતાનું અસ્તિત્વ!
20 જુલાઈનો આજનો દિવસ,
'આંતરરાષ્ટ્રીય ચેસ દિવસ'
દર્દને હવે મારે વેચવું છે,
કોઈ ગ્રાહક હોય તો કેજો,
ઘણું બધું સહન કર્યુ,
નાછૂટકે સાથેજ રહે છે,
થાક્યો છું એની સાથે,
છૂટકારો મળે તો સારુ,
લેનારો કોઈ જડે તો કેજો,
ઓછા ભાવે પણ દેવું છે,
મુર્ખ બની ગયો છે તું,
હસે છે બધાં તારાં પર,
કોણ લે હવે આ દર્દ મારું,
એ બધાં પાસે તો પુષ્કળ છે,
બેઠો છું હવે એકાંતના ખૂણે,
દર્દને બનાવ્યું છે સાથીદાર.
મનોજ નાવડીયા
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