"इंतज़ार जो शायद ख़त्म ही न हो"
इंतज़ार तो ऐसा कर रहा हूँ जैसे, वो सच में एक दिन लौट आएगी...
जैसे इन सूनी गलियों में फिर से उसके क़दमों की आहट पड़ेगी, जैसे इन सूखे होंठों पर फिर से उसका नाम हलके से ठहर जाएगा।
रातें अब भी लंबी नहीं लगतीं, बस ख़ाली लगती हैं, जैसे किसी ने मेरी नींद से मेरा सुकून चुरा लिया हो।
हर सुबह इस आस में आँख खुलती है, कि शायद आज वो "फिर से" अपने होने का कोई सबूत छोड़े।
मेरे कमरे की दीवारें अब भी उसका नाम जानती हैं, और वो तसवीर... जिसे मैंने कई बार हटाना चाहा, हर बार दिल ने कहा- छोड़ दे, उसे रहने दे, कहीं सच में लौट आए तो उसे देख कर मुस्कुरा सके।
कभी-कभी सोचता हूँ वो कैसे जी रही होगी?
क्या उसे भी कभी नींद से पहले मेरी याद आती है?
या अब उसके दिल में किसी और के लिए वैसी ही जगह बन गई है जैसी कभी मेरे लिए थी - अधूरी, मगर सच्ची।
आज भी बारिश की हर बूंद में वही आवाज़ सुनता हूँ, वही हँसी, वही नाराज़गी वही चुप्पी...
कभी लगता है, वो यहीं है, बस छुपी हुई, कहीं मेरी उम्मीदों में, या शायद मेरे टूटने में।
लोग कहते हैं, छोड़े हुए लोग लौट कर नहीं आते, पर दिल अब भी जिद्दी बच्चा बना है, बस बैठा है उसी मोड़ पर जहाँ वो आख़िरी बार पलटी थी, आँखों से कुछ कह कर, होंठों से कुछ और।
शायद वो कभी न लौटे, पर इंतज़ार तो अब साँसों की तरह हो गया है – रोक लूँ हो दम टूट जाए, चलता रहूँ तो दिल हर धड़कन में उसका नाम ले।
बहुत ज्यादा याद आ रही है तुम्हारी🥺🥺🥺