हा अब खुश हुं मैं ,,
क्योंकि अब खुशियों की, तलाश नहीं करती।
सब खो चुकी हूं शायद,,
अब कुछ भी पाने की ,आस नहीं करती ।
शायद बिखरी हुई हूं
अब जुड़ने की, कोशिश नहीं करती ।
जो भी है आज
जी लेती हूं उस आज में कल की तलाश नहीं करती।
सब्र रखती हु अब,
बेवजह ख्वाहिशों की, आस नहीं रखती ।
हा शायद इसलिए खुश हूं मै,
क्योंकि अब खुशियों की, तलाश नहीं करती।