मुस्काते ही अधर जलें तो, कहो भला! मुस्काएँ कैसे?
मन की वीणा टूटी हो तो, प्रेम तराने गाएँ कैसे?
जब पीड़ाएं गणनाओं में सुख से ज़्यादा हों जीवन में,
व्यथा कांच के टुकड़ों जैसे, नित्य चुभे जब अंतर्मन में |
जब एकाकीपन सह -सहकर, मन रिश्तों से ऊब गया हो,
गहन तिमिर से हार मान जब,आस का सूरज डूब गया हो |
एक दिवस सब अच्छा होगा, खुद को ये समझायें कैसे?
मन की वीणा....|
~रिंकी सिंह ✍️
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