हम किसी धर्म के विरोधी नहीं—
पर जब दृष्टि भीतर जागती है,
धर्म सीमाएँ खो देता है।
सब ईश्वर एक हो जाते हैं,
जैसे नदियाँ सागर में समा जाती हैं।
कोई धर्म छोटा-बड़ा नहीं,
छोटा-बड़ा तो अंधी दृष्टि करती है।
जब चेतना खिलती है,
हर प्रार्थना एक ही मौन में घुल जाती है।
धर्म तब बाहर नहीं रहता,
वह तुम्हारे भीतर रूप लेता है।
और रूपांतरण—
यही अस्तित्व का धर्म है,
यही उसकी नियति।
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🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲