खुद को तपाया हैं , जलाया हैं ..!
तब जाकर अपने अंदर के
हुनर को निखारा हैं ..!
खुद की जज़्बातों को शब्दों के द्वारा,
पन्नों पर बिखेरतीं हूं ...!
बहुत अनुभवी तो नहीं ,
पर कुछ बुद्धिजीवियों के बीच रहती हूं...!
सबको परख कर रिश्ता बनाती हूं ,
बाद में पछतावे के आंसू नहीं बहाती हूं ...!
हां , मैं बुरी हूं ....
क्योंकि मुझे धारा-प्रवाह बोलना आता नहीं ...!
हां , मैं घमंडी हूं ....
क्योंकि चापलूसी मैंने कभी सीखा नहीं ...!
पर अर्चना में जो प्रवीणता हैं ...
वो भी किसी से छुपा नहीं ...!!