कविता:-
"राम! तुम कब अयोध्या आओगे?”
राजा दसरथ जी का विलाप
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अब थकने लगे हैं ये नयना,
अब टूटने लगे हैं ये मनना।
हर श्वास बने बस राम तेरा,
हर धड़कन पुकारे नाम तेरा।
बचपन तेरे खेल स्मरण में,
तेरा हँसना बस चित्रण में।
कैसे भूलूँ वो प्यारा चेहरा,
कैसे सहूँ ये बिछोह गहरा।
वन की घटा मुझे डराती,
तेरी काया मन में समाती।
क्या तू भूखा, प्यासा होगा?
क्या धरती पर सोता होगा?
हे पुत्र! पिता का हृदय व्याकुल,
तेरे बिना यह जीवन शिथिल।
सुख–वैभव सब शून्य लगे हैं,
बस आँखों में आँसू बहे हैं।
अब लगता है दीप बुझेगा,
ये जीवन श्वास रुकेगा।
तेरे बिन मुझसे न सहा जाए,
यह प्राण–पक्षी अब उड़े जाए।
मरण समीप खड़ा मुस्काए,
कहता मुझसे—“चल, घर आए।”
पर मैं अब भी तुझको पुकारूँ—
"राम! कब लौटेगा, बता तू?”
और अंत में…
दशरथ का विलाप थम जाता,
राम का नाम ही श्वास बन जाता।
नयन बंद हो जाते अंतिम क्षण में,
राम की छवि बसी हृदय–नयन में।
सुनते हैं देव भी मौन हुए,
जब दशरथ राम का नाम लिए।
अयोध्या रो पड़ी, दिशा रोई,
राम वियोग में प्राण खोई।
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DB-ARYMOULIK