("भीड़ में तन्हा")
भीड़ में हूं, पर दिल अकेला रहता हैं,
मुस्कुराहटों के पीछे कुछ अंधेरा सा छुपा रहता हैं।
हर चेहरा कुछ कहकर भी अनजान लगता हैं,
कोई पास होकर भी, दिल से दूर का अफसाना लगता हैं।
दिल कहता है किसी से कह दूं.... "सुन लो ना मेरी बात",
पर शब्दों का भार भी अब तो लगता हैं एक सजा का साथ,
मां के हाथ, घर की रौशनी फिर से आंखों में छुप जाती हैं।
एक पल को लगता हैं ___काश कोई होता यहां, जो आंखों में देख के कह देता,
"तू अकेली नहीं, मैं हूं ना...."
(सुनीता)