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("भीड़ में तन्हा") भीड़ में हूं, पर दिल अकेला रहता हैं, मुस्कुराहटों के पीछे कुछ अंधेरा सा छुपा रहता हैं। हर चेहरा कुछ कहकर भी अनजान लगता हैं, कोई पास होकर भी, दिल से दूर का अफसाना लगता हैं। दिल कहता है किसी से कह दूं.... "सुन लो ना मेरी बात", पर शब्दों का भार भी अब तो लगता हैं एक सजा का साथ, मां के हाथ, घर की रौशनी फिर से आंखों में छुप जाती हैं। एक पल को लगता हैं ___काश कोई होता यहां, जो आंखों में देख के कह देता, "तू अकेली नहीं, मैं हूं ना...." (सुनीता)
("यादों का घर आंगन") छुप छुप के आशुओं से बात करती है रात, यादों के झरोखे से झांकती है हर बात। मुस्कान है चेहरे पर दिल में एक नमी है, हर हसने वाले पल के पीछे, छुपी कुछ कमी है। फूलों की तरह बिखर गए कुछ रिश्ते राह में, कुछ खुशबुआ रह गई यादों की चाह में। आंखों में आशुओं का साहिल पर लबों पर गीत हैं, दिल दर्द में डूबा है पर चेहरा अभी भी मिट हैं। वो वक्त, वो लोग, वो बाते अधूरी सी लगती हैं, जैसे कहानी अधूरी हो यादें पूरी लगती हैं। फिर भी चल पड़ते है झूठे हसने के साथ, क्योंकि कभी कभी दर्द भी होता हैं एक अनकही बात। (सुनीता)
("यादों का घर") - Sunita bhardwaj
"भरोसा" भरोसा है तो सबकुछ हैं, ना पूछो वक्त का क्या रुख है... ना हर पल में हो जरूरी बाते, कभी चुप भी एक दोस्ती सी रुख है। जब वो कहते है __मुझपर विश्वास है, तो लगता हैं जैसे छोटी सी दुनिया अपनी हैं, ना रिश्ते में नाम हो या वादा कोई बस एक मुस्कान ही काफी हैं जो अपनी है - Sunita bhardwaj
मैने दिया था दोस्ती, मांग लिया उधार, मैंने विश्वास किया तुमने तोला दोस्ती बाजार... पैसे तो छोटी बात थे, पर बात तुम्हारी बड़ी बन गई, एक मतलब के लफ्ज ने मेरी यारी अधूरी कर गई। __(सुनीत) - Sunita bhardwaj
दोस्ती कोई कुर्ता नहीं हैं। जो जब चाहो नया सीलवा लो, तुमने कहा छोड़ दो मुझे और नया दोस्त बना लो, या नई ले आओ दर्द के बाजार से जैसे दोस्ती कोई कुर्ता हो जो पुरानी हो तो छोड़ दो नया सीलवा लो। __(सुनीत) - Sunita bhardwaj
"keep silent" coins always make sound, but paper money is always silent so, when your value increase keep yourself silent and humble. _Sunita - Sunita bhardwaj
मैं मुस्कुराती हूँ , जब कोई टूट के रो पड़ता हैं.... उनके आंसु पोछने में मुझे सुकून मिलता हैं __ जैसे कोइ छोटी सी प्रार्थना पूरी हो गई हो। पर जब मैं अकेली होती हूं, और कोई मेरे दर्द की आंखों में झांकता नहीं.... तब लगता हैं, "क्या मेरी खुशी भी किसी की जिम्मेदारी बनेगी कभी?" पर खुशी मिलती हैं मिलती हैं उन आंखों से जिनमें रौशनी लौटी हो.... मुझे शांति मिलती हैं जब कोई कहता है, "तेरे होने से सब ठीक हो गया..." पर हा, सच ये भी हैं __ कभी कभी मै थम जाती हूं... चुपके रो लेती हूं, किसी डायरी के कोने में अपने नाम लिखकर, जो मैं खुद भी कभी नहीं पढ़ पाई । - Sunita bhardwaj
कांच की खिड़की एक छोटी सी खिड़की हैं मेरे अंदर, कांच की.... नाजुक.... पर सच्ची वहां से हर रोज कुछ लोग झांकते हैं, कोई दुःख ले जाता हैं, कोई मुस्कान छोड़ जाता हैं। मैं सबको अंदर आने देती हूं, पर खुद उस खिड़की के उस पार कभी जा नहीं पाई.... क्या तुमने कभी अपने अंदर की खिड़की देखी हैं? वहीं जहां कान्हा चुपके से बैठ के कहते हैं ___ "बस खोल दे..... मैं हूं यहां भी।" __sunita 🙏 राधे राधे 🙏 - Sunita bhardwaj
मैं ही क्यूं हर रिश्ते में दिल लगाती हूं मैं ही क्यूं हर रिश्ते को दिल से निभाती हूं, मैं ही क्यूं सबके लिए वक्त निकाल लाती हूं? जब उनके लिए मैं एक याद भी नहीं हू, तो क्यूं मैं उनके लिए दुआं बन जाती हूं? वो साथ पढ़ती है पर साथ छोटी सी बात भी नहीं, मैं हर पल उसे महसूस करु, वो तो सिर्फ जरूरत की तरह थी। मुझे लगता था दोस्ती में दर्द नहीं होता, पर अब लगता हैं.... हर रिश्ता भी रुख सा लगता हैं।
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