("यादों का घर आंगन")
छुप छुप के आशुओं से बात करती है रात,
यादों के झरोखे से झांकती है हर बात।
मुस्कान है चेहरे पर दिल में एक नमी है,
हर हसने वाले पल के पीछे, छुपी कुछ कमी है।
फूलों की तरह बिखर गए कुछ रिश्ते राह में,
कुछ खुशबुआ रह गई यादों की चाह में।
आंखों में आशुओं का साहिल पर लबों पर गीत हैं,
दिल दर्द में डूबा है पर चेहरा अभी भी मिट हैं।
वो वक्त, वो लोग, वो बाते अधूरी सी लगती हैं,
जैसे कहानी अधूरी हो यादें पूरी लगती हैं।
फिर भी चल पड़ते है झूठे हसने के साथ,
क्योंकि कभी कभी दर्द भी होता हैं एक अनकही बात।
(सुनीता)