🌑 "छोटी सी उम्र थी… और जज़्बात बहुत बड़े थे…"
छोटी ही उम्र थी… जब घर पीछे छूट गया,
माँ की गोद, बाप की डांट… सब कुछ छूट गया।
ना समझ आया कि दिल क्यों भारी है,
बस इतना पता था — अब से ये दुनिया सारी है।
स्कूल की घंटियाँ अब जिम्मेदारियों की आवाज़ बन गईं,
और खिलौनों की जगह तन्हाईयाँ सज गईं।
भूख लगी तो आँसू निगल गया,
तकलीफ हुई तो खुद को ही दुआ में बदल गया।
रातें लंबी थीं… और बिस्तर ठंडा था,
सपनों से ज़्यादा डर बड़ा था।
कभी किसी की छत के नीचे,
तो कभी किसी सड़क के कोने में… खुद को सुलाया।
लेकिन रुकना नहीं आया…
टूटना भी सीखा, और खुद को जोड़ना भी।
हर ज़ख्म को मुस्कान बना लिया,
और हर हार को सीढ़ी बना लिया।
आज जब आईने में खुद को देखता हूँ,
तो उस मासूम चेहरे में
एक फौलाद जैसा इंसान मुस्कुराता है…
जिसे किसी ने नहीं बनाया…
वो खुद ही खुद को गढ़ गया।
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🖤 "कुछ लोग बचपन में खिलौने छोड़ते हैं,
मैंने तो बचपन ही छोड़ दिया था…"