Hindi Quote in Poem by Raju kumar Chaudhary

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🌀 घूमती कुर्सी पर बैठा अंधा आदमी

✍️ राजु कुमार चौधरी

घूमती कुर्सी पर बैठा एक अंधा आदमी,
आकाश को देखता है — आँखें न होने के बावजूद।
निर्णय करता है उस दिशा में,
जहाँ न रोशनी है, न कोई रास्ता।

उसके हाथ में है एक घड़ी —
मगर उसमें सुइयाँ घूमती ही नहीं।
कानून के कागज़ फटे हुए हैं,
पर उसने कभी उन्हें पढ़ने की कोशिश नहीं की।

जनता की चीख–पुकार —
उसे तो बस एक हल्की हवा सी लगती है।
भूख, प्यास, और पीड़ा —
बस एक "फाइल" बन जाती हैं,
जिन्हें वो कभी खोलता ही नहीं।

कुर्सी घूमती है —
कभी दक्षिण, कभी उत्तर,
पर दिशा कभी उसकी मर्जी जैसी नहीं होती।
कोई उसे रोकता नहीं,
क्योंकि डर सबको है —
उसे "अंधा" कहने वाले भी शायद
खुद अपना चश्मा खोज रहे हैं।

अब सवाल उठता है —
गलत है वह घूमती कुर्सी?
या फिर वह आदमी, जो उस पर बैठा है?

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