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Raju kumar Chaudhary

Raju kumar Chaudhary

@rajukumarchaudhary502010
(978)

भाषा (Language) की परिभाषा -
भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है।

दूसरे शब्दों में- जिसके द्वारा हम अपने भावों को लिखित अथवा कथित रूप से दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है।

सरल शब्दों में- सामान्यतः भाषा मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी को कहते है।

आदिमानव अपने मन के भाव एक-दूसरे को समझाने व समझने के लिए संकेतों का सहारा लेते थे, परंतु संकेतों में पूरी बात समझाना या समझ पाना बहुत कठिन था। आपने अपने मित्रों के साथ संकेतों में बात समझाने के खेल (dumb show) खेले होंगे। उस समय आपको अपनी बात समझाने में बहुत कठिनाई हुई होगी। ऐसा ही आदिमानव के साथ होता था। इस असुविधा को दूर करने के लिए उसने अपने मुख से निकली ध्वनियों को मिलाकर शब्द बनाने आरंभ किए और शब्दों के मेल से बनी- भाषा।

भाषा शब्द संस्कृत के भाष धातु से बना है। जिसका अर्थ है- बोलना। कक्षा में अध्यापक अपनी बात बोलकर समझाते हैं और छात्र सुनकर उनकी बात समझते हैं। बच्चा माता-पिता से बोलकर अपने मन के भाव प्रकट करता है और वे उसकी बात सुनकर समझते हैं। इसी प्रकार, छात्र भी अध्यापक द्वारा समझाई गई बात को लिखकर प्रकट करते हैं और अध्यापक उसे पढ़कर मूल्यांकन करते हैं। सभी प्राणियों द्वारा मन के भावों का आदान-प्रदान करने के लिए भाषा का प्रयोग किया जाता है। पशु-पक्षियों की बोलियों को भाषा नहीं कहा जाता।

इसके द्वारा मनुष्य के भावो, विचारो और भावनाओ को व्यक्त किया जाता है। वैसे भी भाषा की परिभाषा देना एक कठिन कार्य है। फिर भी भाषावैज्ञानिकों ने इसकी अनेक परिभाषा दी है। किन्तु ये परिभाषा पूर्ण नही है। हर में कुछ न कुछ त्रुटि पायी जाती है।

आचार्य देवनार्थ शर्मा ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार बनायी है। उच्चरित ध्वनि संकेतो की सहायता से भाव या विचार की पूर्ण अथवा जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते है उस यादृच्छिक, रूढ़ ध्वनि संकेत की प्रणाली को भाषा कहते है।

यहाँ तीन बातें विचारणीय है-

(1) भाषा ध्वनि संकेत है।

(2) वह यादृच्छिक है।

(3) वह रूढ़ है।

(1) सार्थक शब्दों के समूह या संकेत को भाषा कहते है। यह संकेत स्पष्ट होना चाहिए। मनुष्य के जटिल मनोभावों को भाषा व्यक्त करती है; किन्तु केवल संकेत भाषा नहीं है। रेलगाड़ी का गार्ड हरी झण्डी दिखाकर यह भाव व्यक्त करता है कि गाड़ी अब खुलनेवाली है; किन्तु भाषा में इस प्रकार के संकेत का महत्त्व नहीं है। सभी संकेतों को सभी लोग ठीक-ठीक समझ भी नहीं पाते और न इनसे विचार ही सही-सही व्यक्त हो पाते हैं। सारांश यह है कि भाषा को सार्थक और स्पष्ट होना चाहिए।

(2) भाषा यादृच्छिक संकेत है। यहाँ शब्द और अर्थ में कोई तर्क-संगत सम्बन्ध नहीं रहता। बिल्ली, कौआ, घोड़ा, आदि को क्यों पुकारा जाता है, यह बताना कठिन है। इनकी ध्वनियों को समाज ने स्वीकार कर लिया है। इसके पीछे कोई तर्क नहीं है।

(3) भाषा के ध्वनि-संकेत रूढ़ होते हैं। परम्परा या युगों से इनके प्रयोग होते आये हैं। औरत, बालक, वृक्ष आदि शब्दों का प्रयोग लोग अनन्तकाल से करते आ रहे है। बच्चे, जवान, बूढ़े- सभी इनका प्रयोग करते है। क्यों करते है, इसका कोई कारण नहीं है। ये प्रयोग तर्कहीन हैं।

प्रत्येक देश की अपनी एक भाषा होती है। हमारी राष्टभाषा हिंदी है। संसार में अनेक भाषाए है। जैसे- हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, बँगला, गुजराती, उर्दू, तेलगु, कन्नड़, चीनी, जमर्न आदिै।

हिंदी के कुछ भाषावैज्ञानिकों ने भाषा के निम्नलिखित लक्षण दिए है।

डॉ शयामसुन्दरदास के अनुसार - मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुअों के विषय अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि-संकेतो का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते है।

डॉ बाबुराम सक्सेना के अनुसार- जिन ध्वनि-चिंहों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-बिनिमय करता है उसको समष्टि रूप से भाषा कहते है।

उपर्युक्त परिभाषाओं से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते है-

(1) भाषा में ध्वनि-संकेतों का परम्परागत और रूढ़ प्रयोग होता है।

(2) भाषा के सार्थक ध्वनि-संकेतों से मन की बातों या विचारों का विनिमय होता है।

(3) भाषा के ध्वनि-संकेत किसी समाज या वर्ग के आन्तरिक और ब्राह्य कार्यों के संचालन या विचार-विनिमय में सहायक होते हैं।

(4) हर वर्ग या समाज के ध्वनि-संकेत अपने होते हैं, दूसरों से भित्र होते हैं।

भाषा एक संप्रेषण के रूप में :
'संप्रेषण' एक व्यापक शब्द है। संप्रेषण के अनेक रूप हो सकते हैं। कुछ लोग इशारों से अपनी बात एक-दूसरे तक पहुँचा देते हैं, पर इशारे भाषा नहीं हैं। भाषा भी संप्रेषण का एक रूप है।
भाषा के संप्रेषण में दो लोगों का होना जरूरी होता है- एक अपनी बात को व्यक्त करने वाला, दूसरा उसकी बात को ग्रहण करने वाला। जो भी बात इन दोनों के बीच में संप्रेषित की जाती है, उसे 'संदेश' कहते हैं। भाषा में यही कार्य वक्ता और श्रोता द्वारा किया जाता है। संदेश को व्यक्त करने के लिए वक्ता किसी-न-किसी 'कोड' का सहारा लेता है। कोई इशारों से तो कोई ताली बजाकर अपनी बात कहता है। इस तरह इशारे करना या ताली बजाना एक प्रकार के 'कोड' हैं। वक्ता और श्रोता के बीच भाषा भी 'कोड' का कार्य करती है। भाषा में यह 'कोड' दो तरह के हो सकते हैं- यदि वक्ता बोलकर अपनी बात संप्रेषित करना चाहता है तो वह उच्चरित या मौखिक भाषा (कोड) का सहारा लेना होता है और यदि लिखकर अपनी बात संप्रेषित करना चाहता है तो उसे लिखित भाषा का सहारा लेना होता है।

संप्रेषण के अंतर्गत वक्ता और श्रोता की भूमिकाएँ बदलती रहती हैं। जब पहला व्यक्ति अपनी बात संप्रेषित करता है तब वह वक्ता की भूमिका निभाता है और दूसरा श्रोता की तथा जब दूसरा (श्रोता) व्यक्ति अपनी बात कहता है तब वह वक्ता बन जाता है और पहला (वक्ता) श्रोता की भूमिका निभाता है। कुल मिलाकर यह स्थिति बनती है कि वक्ता पहले किसी संदेश को कोड में बदलता है या कोडीकरण करता है तथा श्रोता उस संदेश को ग्रहण कर कोड से उसके अर्थ तक पहुँचता है या उस कोड का विकोडीकरण करता है। वक्ता और श्रोता के बीच कोडीकरण तथा विकोडीकरण की प्रकिया बराबर चलती रहती है-

.......... संदेश........
वक्ता....................श्रोता
कोडीकरण .......... विकोडीकरण

यहाँ इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वक्ता और श्रोता के बीच जिस 'कोड' का इस्तेमाल किया जा रहा है उससे दोनों परिचित हों अन्यथा दोनों के बीच संप्रेषण नहीं हो सकता।

मानव संप्रेषण तथा मानवेतर संप्रेषण :
संप्रेषण अथवा विचारों का आदान-प्रदान केवल मनुष्यों के बीच ही नहीं होता; मानवेतर प्राणियों के बीच भी होता है। कुत्ते, बंदर तरह-तरह की आवाजें निकालकर दूसरे कुत्ते और बंदरों तक अपनी बात संप्रेषित करते हैं। मधुमक्खियाँ तरह-तरह के नृत्य कर दूसरी मधुमक्खियों तक अपना संदेश संप्रेषित करती हैं। परन्तु मानवेतर संप्रेषण को 'भाषा' नहीं कहा जाता भले ही पशु-पक्षी तरह-तरह की ध्वनियाँ उच्चरित कर संप्रेषण करते हैं। वस्तुतः भाषा का संबंध तो केवल मनुष्य मात्र से है। भाषा का संबंध मानव मुख से उच्चरित ध्वनियों के साथ है या दूसरे शब्दों में कहें तो कह सकते हैं कि 'भाषा' मानव मुख से उच्चरित होती है।

भाषा एक प्रतीक व्यवस्था के रूप में :
यह तो ठीक है कि भाषा मनुष्य के मुख से (वागेंद्रियों से) उच्चरित होती है पर उच्चारण के अंतर्गत मनुष्य तरह-तरह की ध्वनियों (स्वर तथा व्यंजन) के मेल से बने शब्दों का उच्चारण करता है। इन शब्दों से वाक्य बनाता है और वाक्यों के प्रयोग से वह वार्तालाप करता है। एक ओर भाषा के इन शब्दों का कोई-न-कोई अर्थ होता है दूसरी ओर ये किसी-न-किसी वस्तु की ओर संकेत करते हैं। उदाहरण के लिए 'किताब' शब्द का हिंदी में एक अर्थ है, जिससे प्रत्येक हिंदी भाषा-भाषी परिचित है दूसरी ओर यह शब्द किसी वस्तु (object) यानी किताब की ओर भी संकेत करता है। यदि हम किसी से कहते हैं कि 'एक किताब लेकर आओ' तो वह व्यक्ति 'किताब' शब्द को सुनकर उसके अर्थ तक पहुँचता है और फिर 'किताब' को ही लेकर आता है, किसी अन्य वस्तु को नहीं।

कहने का तात्पर्य यही है कि 'शब्द' अपने में वस्तु नहीं होता बल्कि किसी वस्तु को अभिव्यक्त (represent) करता है। इसी बात को इस तरह से कहा जा सकता है कि शब्द तो किसी वस्तु का प्रतीक (sign) होता है।
'प्रतीक' जिस अर्थ तथा वस्तु की ओर संकेत करता है, वस्तुतः वह संसार में सबके लिए समान होते हैं अंतर केवल प्रतीक के स्तर पर ही होता है। 'किताब' शब्द (प्रतीक) का अर्थ तथा वस्तु किताब तो संसार में हर भाषा-भाषी के लिए समान है अंतर केवल 'प्रतीक' के स्तर पर ही है। कोई उसे 'बुक' (book) कहता है तो कोई 'पुस्तक' । इस तरह प्रत्येक 'प्रतीक' की प्रकृति त्रिरेखीय् (three dimentional) होती है। एक ओर वह 'वस्तु' की ओर संकेत करता है तो दूसरी ओर उसके अर्थ की ओर-

अर्थ (कथ्य)

प्रतीक (अभिव्यक्ति)....वस्तु/पशु
घोड़ा (हिंदी)
अश्व (संस्कृत)
होर्स (अंग्रेजी)
कोनि (पोलिश)

वस्तुतः प्रतीक वह है जो किसी समाज या समूह द्वारा किसी अन्य वस्तु, गुण अथवा विशेषता के लिए प्रयुक्त किया जाता है। उदाहरण के 'घोड़ा' वस्तु/पशु के लिए हिंदी में ध्वन्यात्मक प्रतीक है। 'घोड़ा', संस्कृत में 'अश्व', अंग्रेजी में 'होर्स' (horse) तथा पोलिश भाषा 'कोनि' कहलाता है। दूसरी ओर इन सभी भाषा-भाषियों के लिए घोड़ा (पशु) तथा उसका अर्थ समान है। इसी तरह 'लाल बत्ती' (red light) संसार में सभी के लिए रुकने का तथा 'हरी बत्ती' (green light) चलने का प्रतीक है। अतः ध्यान रखिए भाषा का प्रत्येक शब्द किसी-न-किसी वस्तु का प्रतीक होता है। इसलिए यह कहा जाता है कि भाषा ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है। भाषा में अर्थ ही 'कथ्य' होता है तथा प्रतीक अभिव्यक्ति। अतः भाषा कथ्य और अभिव्यक्ति का समन्वित रूप है।

प्रतीकों के संबंध में एक बात और ध्यान रखने योग्य यह है कि वस्तु के लिए प्रतीक का निर्धारण ईश्वर की इच्छा से न होकर मानव इच्छा द्वारा होता है। किसी व्यक्ति ने हिंदी में एक वस्तु को 'कुर्सी' और दूसरी को 'मेज' कह दिया और उसी को समस्त भाषा-भाषियों ने यदि स्वीकार कर लिया तो 'कुर्सी' और 'मेज' शब्द उन वस्तुओं के लिए प्रयोग में आने लगे। अतः वस्तुओं के लिए प्रतीकों का निर्धारण 'यादृच्छिक' (इच्छा से दिया गया नाम) होता है। इस तरह प्रतीक का निर्धारण व्यक्ति द्वारा होता है और उसे स्वीकृति समाज द्वारा दी जाती है। इसलिए भाषा का संबंध एक ओर व्यक्ति से होता है तो दूसरी ओर समाज से। अतः भाषा केवल ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था नहीं है, बल्कि यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था होती है।

भाषा एक व्यवस्था के रूप में :
उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भाषा एक व्यवस्था (system) है। व्यवस्था से तात्पर्य है 'नियम व्यवस्था' । जहाँ भी कोई व्यवस्था होती है, वहाँ कुछ नियम होते हैं। नियम यह तय करते हैं कि क्या हो सकता है और क्या नहीं हो सकता। भाषा के किसी भी स्तर पर (ध्वनि, शब्द, पद, पदबंध, वाक्य आदि) देखें तो सभी जगह आपको यह व्यवस्था दिखाई देगी। कौन-कौन सी ध्वनियाँ किस अनुक्रम (combination) में मिलाकर शब्द बनाएँगी और किस अनुक्रम से बनी रचना शब्द नहीं कहलाएगी, यह बात उस भाषा की ध्वनि संरचना के नियमों पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए हिंदी के निम्नलिखित अनुक्रमों पर ध्यान दीजिए-

(1) क् + अ + म् + अ + ल् + अ = कमल ....(सही)

(2) क् + अ + ल् + अ + म् +अ =कलम .....(सही)

(3) म् + अ + क् + अ + ल् + अ = मकल ....(गलत)

(4) ल् + अ + क् + अ + म् + अ = लकम ....(गलत)

ऊपर के चारों अनुक्रमों में समान व्यंजन एवं स्वर ध्वनियों से शब्द बनाए गए हैं, किंतु सार्थक होने के कारण 'कमल' तथा 'कलम' तो हिंदी के शब्द हैं पर निरर्थक होने के कारण 'मकल' तथा 'लकम' हिंदी के शब्द नहीं हैं। अतः ध्यान रखिए, हर भाषा में कुछ नियम होते हैं ये नियम ही उस भाषा की संरचना को संचालित या नियंत्रित करते हैं। इसलिए भाषा को 'नियम संचालित व्यवस्था' कहा जाता है।

भाषा का उद्देश्य :
भाषा का उद्देश्य है- संप्रेषण या विचारों का आदान-प्रदान।

भाषा के प्रकार

भाषा के तीन रूप होते है-

(1) मौखिक भाषा

(2) लिखित भाषा

(3) सांकेतिक भाषा।

(1) मौखिक भाषा :-
विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता में वक्ताओं ने बोलकर अपने विचार प्रकट किए तथा श्रोताओं ने सुनकर उनका आनंद उठाया। यह भाषा का मौखिक रूप है। इसमें वक्ता बोलकर अपनी बात कहता है व श्रोता सुनकर उसकी बात समझता है।

इस प्रकार, भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति बोलकर विचार प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति सुनकर उसे समझता है, मौखिक भाषा कहलाती है।

दूसरे शब्दों में- जिस ध्वनि का उच्चारण करके या बोलकर हम अपनी बात दुसरो को समझाते है, उसे मौखिक भाषा कहते है।

उदाहरण:

टेलीफ़ोन, दूरदर्शन, भाषण, वार्तालाप, नाटक, रेडियो आदि।

मौखिक या उच्चरित भाषा, भाषा का बोल-चाल का रूप है। उच्चरित भाषा का इतिहास तो मनुष्य के जन्म के साथ जुड़ा हुआ है। मनुष्य ने जब से इस धरती पर जन्म लिया होगा तभी से उसने बोलना प्रारंभ कर दिया होगा तभी से उसने बोलना प्रारंभ कर दिया होगा। इसलिए यह कहा जाता है कि भाषा मूलतः मौखिक है।

यह भाषा का प्राचीनतम रूप है। मनुष्य ने पहले बोलना सीखा। इस रूप का प्रयोग व्यापक स्तर पर होता है।

मौखिक भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1) यह भाषा का अस्थायी रूप है।

(2) उच्चरित होने के साथ ही यह समाप्त हो जाती है।

(3) वक्ता और श्रोता एक-दूसरे के आमने-सामने हों प्रायः तभी मौखिक भाषा का प्रयोग किया जा सकता है।

(4) इस रूप की आधारभूत इकाई 'ध्वनि' है। विभिन्न ध्वनियों के संयोग से शब्द बनते हैं जिनका प्रयोग वाक्य में तथा विभिन्न वाक्यों का प्रयोग वार्तालाप में किया जाता हैं।

(5) यह भाषा का मूल या प्रधान रूप हैं।

(2) लिखित भाषा :-
मुकेश छात्रावास में रहता है। उसने पत्र लिखकर अपने माता-पिता को अपनी कुशलता व आवश्यकताओं की जानकारी दी। माता-पिता ने पत्र पढ़कर जानकारी प्राप्त की। यह भाषा का लिखित रूप है। इसमें एक व्यक्ति लिखकर विचार या भाव प्रकट करता है, दूसरा पढ़कर उसे समझता है।

इस प्रकार भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति अपने विचार या मन के भाव लिखकर प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति पढ़कर उसकी बात समझता है, लिखित भाषा कहलाती है।

दूसरे शब्दों में- जिन अक्षरों या चिन्हों की सहायता से हम अपने मन के विचारो को लिखकर प्रकट करते है, उसे लिखित भाषा कहते है।

उदाहरण:

पत्र, लेख, पत्रिका, समाचार-पत्र, कहानी, जीवनी, संस्मरण, तार आदि।

उच्चरित भाषा की तुलना में लिखित भाषा का रूप बाद का है। मनुष्य को जब यह अनुभव हुआ होगा कि वह अपने मन की बात दूर बैठे व्यक्तियों तक या आगे आने वाली पीढ़ी तक भी पहुँचा दे तो उसे लिखित भाषा की आवश्यकता हुई होगी। अतः मौखिक भाषा को स्थायित्व प्रदान करने हेतु उच्चरितध्वनि प्रतीकों के लिए 'लिखित-चिह्नों' का विकास हुआ होगा।

इस तरह विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों ने अपनी-अपनी भाषिक ध्वनियों के लिए तरह-तरह की आकृति वाले विभिन्न लिखित-चिह्नों का निर्माण किया और इन्हीं लिखित-चिह्नों को 'वर्ण' (letter) कहा गया। अतः जहाँ मौखिक भाषा की आधारभूत इकाई ध्वनि (Phone) है तो वहीं लिखित भाषा की आधारभूत इकाई 'वर्ण' (letter) हैं।

लिखित भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1) यह भाषा का स्थायी रूप है।

(2) इस रूप में हम अपने भावों और विचारों को अनंत काल के लिए सुरक्षित रख सकते हैं।

(3) यह रूप यह अपेक्षा नहीं करता कि वक्ता और श्रोता आमने-सामने हों।

(4) इस रूप की आधारभूत इकाई 'वर्ण' हैं जो उच्चरित ध्वनियों को अभिव्यक्त (represent) करते हैं।

(5) यह भाषा का गौण रूप है।

इस तरह यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि भाषा का मौखिक रूप ही प्रधान या मूल रूप है। किसी व्यक्ति को यदि लिखना-पढ़ना (लिखित भाषा रूप) नहीं आता तो भी हम यह नहीं कह सकते कि उसे वह भाषा नहीं आती। किसी व्यक्ति को कोई भाषा आती है, इसका अर्थ है- वह उसे सुनकर समझ लेता है तथा बोलकर अपनी बात संप्रेषित कर लेता है।

(3) सांकेतिक भाषा :-
जिन संकेतो के द्वारा बच्चे या गूँगे अपनी बात दूसरों को समझाते है, वे सब सांकेतिक भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जब संकेतों (इशारों) द्वारा बात समझाई और समझी जाती है, तब वह सांकेतिक भाषा कहलाती है।

जैसे- चौराहे पर खड़ा यातायात नियंत्रित करता सिपाही, मूक-बधिर व्यक्तियों का वार्तालाप आदि।
इसका अध्ययन व्याकरण में नहीं किया जाता।

भाषा की प्रकृति
भाषा सागर की तरह सदा चलती-बहती रहती है। भाषा के अपने गुण या स्वभाव को भाषा की प्रकृति कहते हैं। हर भाषा की अपनी प्रकृति, आंतरिक गुण-अवगुण होते है। भाषा एक सामाजिक शक्ति है, जो मनुष्य को प्राप्त होती है। मनुष्य उसे अपने पूवर्जो से सीखता है और उसका विकास करता है।

यह परम्परागत और अर्जित दोनों है। जीवन्त भाषा 'बहता नीर' की तरह सदा प्रवाहित होती रहती है। भाषा के दो रूप है- कथित और लिखित। हम इसका प्रयोग कथन के द्वारा, अर्थात बोलकर और लेखन के द्वारा (लिखकर) करते हैं। देश और काल के अनुसार भाषा अनेक रूपों में बँटी है। यही कारण है कि संसार में अनेक भाषाएँ प्रचलित हैं। भाषा वाक्यों से बनती है, वाक्य शब्दों से और शब्द मूल ध्वनियों से बनते हैं। इस तरह वाक्य, शब्द और मूल ध्वनियाँ ही भाषा के अंग हैं। व्याकरण में इन्हीं के अंग-प्रत्यंगों का अध्ययन-विवेचन होता है। अतएव, व्याकरण भाषा पर आश्रित है।

भाषा के विविध रूप
हर देश में भाषा के तीन रूप मिलते है-

(1) बोलियाँ

(2) परिनिष्ठित भाषा

(3) राष्ट्र्भाषा

(1) बोलियाँ :-
जिन स्थानीय बोलियों का प्रयोग साधारण अपने समूह या घरों में करती है, उसे बोली (dialect) कहते है।

किसी भी देश में बोलियों की संख्या अनेक होती है। ये घास-पात की तरह अपने-आप जन्म लेती है और किसी क्षेत्र-विशेष में बोली जाती है। जैसे- भोजपुरी, मगही, अवधी, मराठी, तेलगु, इंग्लिश आदि।

(2) परिनिष्ठित भाषा :-
यह व्याकरण से नियन्त्रित होती है। इसका प्रयोग शिक्षा, शासन और साहित्य में होता है। बोली को जब व्याकरण से परिष्कृत किया जाता है, तब वह परिनिष्ठित भाषा बन जाती है। खड़ीबोली कभी बोली थी, आज परिनिष्ठित भाषा बन गयी है, जिसका उपयोग भारत में सभी स्थानों पर होता है। जब भाषा व्यापक शक्ति ग्रहण कर लेती है, तब आगे चलकर राजनीतिक और सामाजिक शक्ति के आधार पर राजभाषा या राष्टभाषा का स्थान पा लेती है। ऐसी भाषा सभी सीमाओं को लाँघकर अधिक व्यापक और विस्तृत क्षेत्र में विचार-विनिमय का साधन बनकर सारे देश की भावात्मक एकता में सहायक होती है। भारत में पन्द्रह विकसित भाषाएँ है, पर हमारे देश के राष्ट्रीय नेताओं ने हिन्दी भाषा को 'राष्ट्रभाषा' (राजभाषा) का गौरव प्रदान किया है। इस प्रकार, हर देश की अपनी राष्ट्रभाषा है- रूस की रूसी, फ्रांस की फ्रांसीसी, जर्मनी की जर्मन, जापान की जापानी आदि।

(3) राष्ट्र्भाषा :-
जब कोई भाषा किसी राष्ट्र के अधिकांश प्रदेशों के बहुमत द्वारा बोली व समझी जाती है, तो वह राष्टभाषा बन जाती है।
दूसरे शब्दों में- वह भाषा जो देश के अधिकतर निवासियों द्वारा प्रयोग में लाई जाती है, राष्ट्रभाषा कहलाती है।

सभी देशों की अपनी-अपनी राष्ट्रभाषा होती है; जैसे- अमरीका-अंग्रेजी, चीन-चीनी, जापान-जापानी, रूस-रूसी आदि।

भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है। यह लगभग 70-75 प्रतिशत लोगों द्वारा प्रयोग में लाई जाती है।

भाषा और लिपि

लिपि -शब्द का अर्थ है-'लीपना' या 'पोतना' विचारो का लीपना अथवा लिखना ही लिपि कहलाता है।

दूसरे शब्दों में- भाषा की उच्चरित/मौखिक ध्वनियों को लिखित रूप में अभिव्यक्त करने के लिए निश्चित किए गए चिह्नों या वर्णों की व्यवस्था को लिपि कहते हैं।

हिंदी और संस्कृत भाषा की लिपि देवनागरी है। अंग्रेजी भाषा की लिपि रोमन पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी और उर्दू भाषा की लिपि फारसी है।

मौखिक या उच्चरित भाषा को स्थायित्व प्रदान करने के लिए भाषा के लिखित रूप का विकास हुआ। प्रत्येक उच्चरित ध्वनि के लिए लिखित चिह्न या वर्ण बनाए गए। वर्णों की पूरी व्यवस्था को ही लिपि कहा जाता है। वस्तुतः लिपि उच्चरित ध्वनियों को लिखकर व्यक्त करने का एक ढंग है।

सभ्यता के विकास के साथ-साथ अपने भावों और विचारों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए, दूर-सुदूर स्थित लोगों से संपर्क बनाए रखने के लिए तथा संदेशों और समाचारों के आदान-प्रदान के लिए जब मौखिक भाषा से काम न चल पाया होगा तब मौखिक ध्वनि संकेतों (प्रतीकों) को लिखित रूप देने की आवश्यकता अनुभव हुई होगी। यही आवश्यकता लिपि के विकास का कारण बनी होगी।

अनेक लिपियाँ :
किसी भी भाषा को एक से अधिक लिपियों में लिखा जा सकता है तो दूसरी ओर कई भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है अर्थात एक से अधिक भाषाओं को किसी एक लिपि में लिखा जा सकता है। उदाहरण के लिए हिंदी भाषा को हम देवनागरी तथा रोमन दोनों लिपियों में इस प्रकार लिख सकते हैं-

देवनागरी लिपि - मीरा घर गई है।

रोमन लिपि - meera ghar gayi hai.

इसके विपरीत हिंदी, मराठी, नेपाली, बोडो तथा संस्कृत सभी भाषाएँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं।
हिंदी जिस लिपि में लिखी जाती है उसका नाम 'देवनागरी लिपि' है। देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपिसे हुआ है। ब्राह्मी वह प्राचीन लिपि है जिससे हिंदी की देवनागरी का ही नहीं गुजराती, बँगला, असमिया, उड़िया आदि भाषाओं की लिपियों का भी विकास हुआ है।

देवनागरी लिपि में बायीं ओर से दायीं ओर लिखा जाता है। यह एक वैज्ञानिक लिपि है। यह एक मात्र ऐसी लिपि है जिसमें स्वर तथा व्यंजन ध्वनियों को मिलाकर लिखे जाने की व्यवस्था है। संसार की समस्त भाषाओं में व्यंजनों का स्वतंत्र रूप में उच्चारण स्वर के साथ मिलाकर किया जाता है पर देवनागरी के अलावा विश्व में कोई भी ऐसी लिपि नहीं है जिसमें व्यंजन और स्वर को मिलाकर लिखे जाने की व्यवस्था हो। यही कारण है कि देवनागरी लिपि अन्य लिपियों की तुलना में अधिक वैज्ञानिक लिपि है।

अधिकांश भारतीय भाषाओं की लिपियाँ बायीं ओर से दायीं ओर ही लिखी जाती हैं। केवल उर्दू जो फारसी लिपि में लिखी जाती है दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती है।

नीचे की तालिका में विश्व की कुछ भाषाओं और उनकी लिपियों के नाम दिए जा रहे हैं-

क्रम

भाषा

लिपियाँ

1

हिंदी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, बोडो

देवनागरी

2

अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, इटेलियन, पोलिश, मीजो

रोमन

3

पंजाबी

गुरुमुखी

4

उर्दू, अरबी, फारसी

फारसी

5

रूसी, बुल्गेरियन, चेक, रोमानियन

रूसी

6

बँगला

बँगला

7

उड़िया

उड़िया

8

असमिया

असमिया

हिन्दी में लिपि चिह्न
देवनागरी के वर्णो में ग्यारह स्वर और इकतालीस व्यंजन हैं। व्यंजन के साथ स्वर का संयोग होने पर स्वर का जो रूप होता है, उसे मात्रा कहते हैं; जैसे-

अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ

ा ि ी ु ू ृ े ै ो ौ

क का कि की कु कू के कै को कौ

देवनागरी लिपि
देवनागरी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि है तथा ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है। विद्वानों का मानना है कि ब्राह्मी लिपि से देवनागरी का विकास सीधे-सीधे नहीं हुआ है, बल्कि यह उत्तर शैली की कुटिल, शारदा और प्राचीन देवनागरी के रूप में होता हुआ वर्तमान देवनागरी लिपि तक पहुँचा है। प्राचीन नागरी के दो रूप विकसित हुए- पश्चिमी तथा पूर्वी। इन दोनों रूपों से विभिन्न लिपियों का विकास इस प्रकार हुआ-

प्राचीन देवनागरी लिपि:
पश्चिमी प्राचीन देवनागरी- गुजराती, महाजनी, राजस्थानी, महाराष्ट्री, नागरी

पूर्वी प्राचीन देवनागरी- कैथी, मैथिली, नेवारी, उड़िया, बँगला, असमिया

संक्षेप में ब्राह्मी लिपि से वर्तमान देवनागरी लिपि तक के विकासक्रम को निम्नलिखित आरेख से समझा जा सकता है-

ब्राह्मी:
उत्तरी शैली- गुप्त लिपि, कुटिल लिपि, शारदा लिपि, प्राचीन नागरी लिपि
प्राचीन नागरी लिपि:
पूर्वी नागरी- मैथली, कैथी, नेवारी, बँगला, असमिया आदि।
पश्चिमी नागरी- गुजराती, राजस्थानी, महाराष्ट्री, म

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📖 कहानी की शुरुआत

यह कहानी है एक लड़के रॉबर्ट की, जो हवाई (Hawaii) में पला-बढ़ा। उसके दो पिता थे — एक उसके असली पिता (Poor Dad) और दूसरा उसके सबसे अच्छे दोस्त माइक का पिता (Rich Dad)।

Poor Dad – पढ़ाई में बहुत तेज, अच्छी सरकारी नौकरी, ऊँची डिग्री, लेकिन महीने की सैलरी खत्म होते ही जेब खाली। सोच: “पढ़ाई करो, नौकरी लो, सुरक्षित जिंदगी जियो।”

Rich Dad – औपचारिक शिक्षा कम, लेकिन बिजनेस और पैसे का गहरा ज्ञान। सोच: “पैसे को अपने लिए काम करवाओ, Assets बनाओ।”


रॉबर्ट दोनों के बीच का फर्क देखकर हैरान था। एक पढ़ा-लिखा और सम्मानित, फिर भी पैसों के मामले में संघर्षरत। दूसरा कम पढ़ा-लिखा, फिर भी अमीर और सफल।


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पहला सबक – पैसे के लिए मत काम करो

एक दिन रॉबर्ट और माइक ने Rich Dad से कहा:

> “हम अमीर बनना चाहते हैं, हमें सिखाइए।”



Rich Dad ने मुस्कुराते हुए कहा:

> “ठीक है, मेरी दुकान में काम करो — लेकिन बहुत कम वेतन पर।”



दोनों लड़के काम करने लगे, लेकिन जल्दी ही शिकायत करने लगे:

> “ये तो शोषण है! हमें ज्यादा पैसे चाहिए।”



Rich Dad ने समझाया:

> “यही तो फर्क है गरीब और अमीर सोच में। गरीब और मध्यम वर्ग के लोग पैसे के लिए काम करते हैं, लेकिन अमीर लोग ऐसे अवसर ढूँढते हैं जिससे पैसा उनके लिए काम करे। सैलरी के जाल में मत फँसो।”



यह बात रॉबर्ट के दिल में उतर गई — "पैसे के लिए काम मत करो, पैसे को अपने लिए काम करवाओ।"


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दूसरा सबक – वित्तीय शिक्षा लो

Rich Dad ने रॉबर्ट को एक कागज़ पर दो कॉलम बनाने को कहा:

Assets (संपत्ति) – जो जेब में पैसा डालें

Liabilities (दायित्व) – जो जेब से पैसा निकालें


फिर कहा:

> “अमीर लोग Assets खरीदते हैं, गरीब लोग Liabilities को Assets समझकर खरीद लेते हैं।”



उदाहरण:

किराये का घर – Asset (क्योंकि किराया आता है)

EMI पर लिया घर – Liability (क्योंकि किस्त जाती है)


Poor Dad की सोच थी – “अपना घर सबसे अच्छा निवेश है।”
Rich Dad की सोच थी – “अपना घर तब तक Asset नहीं जब तक वह आपके जेब में पैसा न डाल दे।”


---

तीसरा सबक – बिजनेस बनाओ, नौकरी के भरोसे मत रहो

Poor Dad कहते थे – “अच्छी नौकरी लो।”
Rich Dad कहते थे – “अपना खुद का बिजनेस बनाओ, और साइड में Assets बढ़ाओ।”

रॉबर्ट ने समझा:

नौकरी से Active Income आती है (जब तक काम कर रहे हो)

बिजनेस और निवेश से Passive Income आती है (बिना काम के भी)



---

चौथा सबक – टैक्स और कंपनियों का खेल

Rich Dad ने टैक्स के बारे में सिखाया:

सैलरी पाने वाला पहले टैक्स देता है, फिर बची रकम खर्च करता है।

बिजनेस मालिक पहले खर्च करता है, फिर जो बचा उस पर टैक्स देता है।


कंपनी बनाकर:

टैक्स कम हो सकता है

संपत्ति सुरक्षित रखी जा सकती है

कानूनी सुरक्षा मिलती है



---

पाँचवाँ सबक – अवसर पहचानो

Poor Dad अक्सर कहते थे – “मैं यह नहीं कर सकता।”
Rich Dad कहते थे – “मैं इसे कैसे कर सकता हूँ?”

अमीर लोग समस्याओं को अवसर में बदलते हैं।
रॉबर्ट ने सीखा कि डर और लालच दोनों को कंट्रोल करना जरूरी है:

डर: पैसे की कमी का डर लोगों को नौकरी में बाँध देता है

लालच: ज्यादा चाहत उन्हें खर्चीला बना देती है



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छठा सबक – सीखने के लिए काम करो

Rich Dad ने कहा:

> “अगर अमीर बनना चाहते हो, तो सिर्फ पैसे के लिए काम मत करो, बल्कि कौशल (Skills) सीखो।”



रॉबर्ट ने सेल्स, मार्केटिंग, पब्लिक स्पीकिंग, अकाउंटिंग, और निवेश की ट्रेनिंग ली।
Poor Dad कहते – “ये सब काम मेरे स्तर के नीचे हैं।”
Rich Dad कहते – “हर अनुभव तुम्हें और अमीर बनाएगा।”


---

सातवाँ सबक – Action लो

रॉबर्ट ने महसूस किया कि:

ज्यादातर लोग सोचते हैं, लेकिन करते नहीं।

अमीर बनने के लिए सीखना, प्रयोग करना और असफलताओं से न डरना जरूरी है।


Rich Dad का मंत्र:

> “बड़ा सोचो, छोटे से शुरू करो, लेकिन शुरू ज़रूर करो।”




---

अमीर बनने के 10 कदम – Rich Dad की गाइड

1. अपने सपने को तय करो।


2. बड़ा लक्ष्य रखो।


3. वित्तीय ज्ञान बढ़ाओ।


4. खर्चों पर नियंत्रण रखो।


5. Assets में निवेश करो।


6. सही लोगों के साथ रहो।


7. छोटे से शुरू करो, धीरे-धीरे बढ़ाओ।


8. बाजार और अर्थव्यवस्था को समझो।


9. टेक्नोलॉजी और नए अवसर अपनाओ।


10. सीखना कभी बंद मत करो।




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कहानी का निष्कर्ष

रॉबर्ट के जीवन में दोनों पिताओं का गहरा प्रभाव रहा:

Poor Dad ने उसे शिक्षा, मेहनत, और ईमानदारी सिखाई।

Rich Dad ने उसे वित्तीय शिक्षा, निवेश, और अमीर बनने की सोच दी।


आखिर में रॉबर्ट ने समझा:

> “पैसा सिर्फ मेहनत से नहीं, बल्कि सही सोच, वित्तीय शिक्षा और समझदारी से बनता है।”

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📖 पुस्तक का परिचय

लेखक: रॉबर्ट कियोसाकी (Robert T. Kiyosaki)

प्रकाशन वर्ष: 1997

शैली: Personal Finance / Self-help

मुख्य विषय: पैसे का सही उपयोग, अमीर बनने की सोच, वित्तीय स्वतंत्रता, निवेश


यह किताब रॉबर्ट कियोसाकी के जीवन के दो “पिताओं” की कहानी पर आधारित है:

1. Poor Dad (गरीब पिता) – उनके असली पिता, एक highly educated लेकिन financial ज्ञान में कमजोर व्यक्ति। सरकारी नौकरी करते थे और पारंपरिक सोच रखते थे – "पढ़ाई करो, नौकरी पाओ, और सुरक्षित जिंदगी जियो।"


2. Rich Dad (अमीर पिता) – उनके दोस्त माइक के पिता, जिनकी औपचारिक शिक्षा कम थी लेकिन पैसे को समझने और उसे बढ़ाने की कला थी। उन्होंने रॉबर्ट को व्यवसाय और निवेश के बारे में सिखाया।



रॉबर्ट ने दोनों पिताओं से अलग-अलग सोच और आदतें सीखी, और उनकी तुलना से यह किताब तैयार हुई।


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1. अमीर और गरीब सोच का अंतर

लेखक बताते हैं कि अमीर और गरीब के बीच सबसे बड़ा फर्क सोच और पैसे को देखने का नजरिया है।

गरीब पिता कहते थे:

“अच्छी पढ़ाई करो, अच्छी नौकरी लो।”

पैसे के लिए काम करो।

कर्ज से दूर रहो।

जोखिम से बचो।


अमीर पिता कहते थे:

“पैसे को अपने लिए काम कराओ।”

व्यवसाय और निवेश सीखो।

संपत्ति (Assets) बढ़ाओ, देनदारियाँ (Liabilities) कम करो।

वित्तीय शिक्षा लो, सिर्फ डिग्री नहीं।




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2. पैसे के लिए काम मत करो – पैसे को आपके लिए काम करने दो

जब रॉबर्ट और माइक ने Rich Dad से पैसे कमाने का तरीका सीखने की इच्छा जताई, तो उन्होंने उन्हें एक दुकान में कम वेतन पर काम कराया।

शुरुआत में वे शिकायत करने लगे, लेकिन Rich Dad ने समझाया कि असली शिक्षा पैसे के लिए काम करने में नहीं, बल्कि पैसा कमाने के नए तरीके ढूँढने में है।

ज्यादातर लोग "सैलरी" के जाल में फँस जाते हैं और कभी आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो पाते।



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3. वित्तीय शिक्षा का महत्व

स्कूल हमें पैसे कमाने के तरीकों की बजाय नौकरी के लिए पढ़ाते हैं। लेकिन:

वित्तीय साक्षरता (Financial Literacy) जरूरी है, जिसमें शामिल है:

Income Statement (आय विवरण)

Balance Sheet (बैलेंस शीट)

Assets और Liabilities का फर्क समझना



Asset vs Liability

Asset (संपत्ति): जो आपकी जेब में पैसा डालता है (जैसे – निवेश, किराये की संपत्ति, स्टॉक्स, बिजनेस)

Liability (दायित्व): जो आपकी जेब से पैसा निकालता है (जैसे – महंगी कार, घर का EMI, क्रेडिट कार्ड का कर्ज)


सीख: अमीर लोग पहले Assets खरीदते हैं, गरीब लोग Liabilities को Assets समझकर खरीदते हैं।


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4. अपना खुद का व्यवसाय बनाओ

Rich Dad सिखाते हैं कि:

नौकरी करते समय भी अपना Asset बनाते रहो।

सिर्फ "Income" पर निर्भर मत रहो, बल्कि "Passive Income" (बिना मेहनत का पैसा) के स्रोत तैयार करो।

बिजनेस और निवेश के बारे में सीखो, भले ही शुरुआत में असफल हो जाओ।



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5. टैक्स और कंपनियों का खेल समझो

अमीर लोग कंपनियों का उपयोग करके:

टैक्स कम करते हैं (क्योंकि कंपनी के खर्च पहले घटाए जाते हैं, फिर टैक्स लगता है)

संपत्ति सुरक्षित रखते हैं

कानूनी लाभ उठाते हैं


उदाहरण:

सैलरी पाने वाला पहले टैक्स देता है, फिर जो बचा उसमें खर्च करता है।

बिजनेस मालिक पहले खर्च करता है, फिर बची रकम पर टैक्स देता है।



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6. अमीर लोग अवसर बनाते हैं

गरीब लोग अक्सर "मैं नहीं कर सकता" सोचते हैं।

अमीर लोग सोचते हैं, "मैं इसे कैसे कर सकता हूँ?"

पैसा बनाने के लिए रचनात्मक सोच और साहस चाहिए।

असफलता से डरने के बजाय, उससे सीखना जरूरी है।



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7. सीखने के लिए काम करो, पैसे के लिए नहीं

Rich Dad ने रॉबर्ट को अलग-अलग काम सीखने के लिए प्रेरित किया:

मार्केटिंग, सेल्स, कम्युनिकेशन, अकाउंटिंग, निवेश आदि।

नौकरी को सीखने का अवसर मानो, न कि सिर्फ कमाई का जरिया।



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8. डर और लालच का चक्र

डर (Fear): पैसे की कमी का डर लोगों को सिर्फ सैलरी वाली नौकरी तक सीमित रखता है।

लालच (Greed): ज्यादा चाहत उन्हें खर्चीला बना देती है।

अमीर लोग इस चक्र से बाहर निकलने के लिए वित्तीय ज्ञान का उपयोग करते हैं।



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9. एक्शन लो – सिर्फ सोचो मत

ज्यादातर लोग "Knowledge" तो रखते हैं लेकिन "Action" नहीं लेते।

अमीर बनने के लिए अभ्यास, असफलता, और लगातार सीखना जरूरी है।



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10. अमीर बनने के 10 कदम (Rich Dad के अनुसार)

1. आर्थिक स्वतंत्रता का सपना तय करो।


2. बड़ा लक्ष्य रखो।


3. वित्तीय शिक्षा लो।


4. खर्चों पर नियंत्रण रखो।


5. Assets में निवेश करो।


6. खुद को अच्छे लोगों से घेरो।


7. छोटे से शुरू करो, धीरे-धीरे बढ़ाओ।


8. बाजार और अर्थव्यवस्था को समझो।


9. टेक्नोलॉजी और नए अवसर अपनाओ।


10. कभी सीखना बंद मत करो।




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पुस्तक से मुख्य सीख

पैसों के लिए काम मत करो, पैसे को आपके लिए काम करने दो।

Asset और Liability का फर्क समझो और Asset बढ़ाओ।

वित्तीय शिक्षा सबसे जरूरी है।

जोखिम लेने और असफलता से डरने के बजाय, उससे सीखो।

Passive Income के स्रोत बनाओ।

टैक्स और कानूनी नियमों को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करो।



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निष्कर्ष

"Rich Dad Poor Dad" सिर्फ अमीर बनने की गाइड नहीं, बल्कि सोच बदलने की किताब है।
यह हमें बताती है कि पैसा सिर्फ मेहनत से नहीं, बल्कि सही वित्तीय ज्ञान और समझदारी भरे फैसलों से बनता है।

अगर आप आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना चाहते हैं, तो:

अपनी वित्तीय शिक्षा में निवेश करें

Assets बढ़ाएँ, Liabilities घटाएँ

और सबसे जरूरी – Action लें

📖 कहानी की शुरुआत

यह कहानी है एक लड़के रॉबर्ट की, जो हवाई (Hawaii) में पला-बढ़ा। उसके दो पिता थे — एक उसके असली पिता (Poor Dad) और दूसरा उसके सबसे अच्छे दोस्त माइक का पिता (Rich Dad)।

Poor Dad – पढ़ाई में बहुत तेज, अच्छी सरकारी नौकरी, ऊँची डिग्री, लेकिन महीने की सैलरी खत्म होते ही जेब खाली। सोच: “पढ़ाई करो, नौकरी लो, सुरक्षित जिंदगी जियो।”

Rich Dad – औपचारिक शिक्षा कम, लेकिन बिजनेस और पैसे का गहरा ज्ञान। सोच: “पैसे को अपने लिए काम करवाओ, Assets बनाओ।”


रॉबर्ट दोनों के बीच का फर्क देखकर हैरान था। एक पढ़ा-लिखा और सम्मानित, फिर भी पैसों के मामले में संघर्षरत। दूसरा कम पढ़ा-लिखा, फिर भी अमीर और सफल।


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पहला सबक – पैसे के लिए मत काम करो

एक दिन रॉबर्ट और माइक ने Rich Dad से कहा:

> “हम अमीर बनना चाहते हैं, हमें सिखाइए।”



Rich Dad ने मुस्कुराते हुए कहा:

> “ठीक है, मेरी दुकान में काम करो — लेकिन बहुत कम वेतन पर।”



दोनों लड़के काम करने लगे, लेकिन जल्दी ही शिकायत करने लगे:

> “ये तो शोषण है! हमें ज्यादा पैसे चाहिए।”



Rich Dad ने समझाया:

> “यही तो फर्क है गरीब और अमीर सोच में। गरीब और मध्यम वर्ग के लोग पैसे के लिए काम करते हैं, लेकिन अमीर लोग ऐसे अवसर ढूँढते हैं जिससे पैसा उनके लिए काम करे। सैलरी के जाल में मत फँसो।”



यह बात रॉबर्ट के दिल में उतर गई — "पैसे के लिए काम मत करो, पैसे को अपने लिए काम करवाओ।"


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दूसरा सबक – वित्तीय शिक्षा लो

Rich Dad ने रॉबर्ट को एक कागज़ पर दो कॉलम बनाने को कहा:

Assets (संपत्ति) – जो जेब में पैसा डालें

Liabilities (दायित्व) – जो जेब से पैसा निकालें


फिर कहा:

> “अमीर लोग Assets खरीदते हैं, गरीब लोग Liabilities को Assets समझकर खरीद लेते हैं।”



उदाहरण:

किराये का घर – Asset (क्योंकि किराया आता है)

EMI पर लिया घर – Liability (क्योंकि किस्त जाती है)


Poor Dad की सोच थी – “अपना घर सबसे अच्छा निवेश है।”
Rich Dad की सोच थी – “अपना घर तब तक Asset नहीं जब तक वह आपके जेब में पैसा न डाल दे।”


---

तीसरा सबक – बिजनेस बनाओ, नौकरी के भरोसे मत रहो

Poor Dad कहते थे – “अच्छी नौकरी लो।”
Rich Dad कहते थे – “अपना खुद का बिजनेस बनाओ, और साइड में Assets बढ़ाओ।”

रॉबर्ट ने समझा:

नौकरी से Active Income आती है (जब तक काम कर रहे हो)

बिजनेस और निवेश से Passive Income आती है (बिना काम के भी)



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चौथा सबक – टैक्स और कंपनियों का खेल

Rich Dad ने टैक्स के बारे में सिखाया:

सैलरी पाने वाला पहले टैक्स देता है, फिर बची रकम खर्च करता है।

बिजनेस मालिक पहले खर्च करता है, फिर जो बचा उस पर टैक्स देता है।


कंपनी बनाकर:

टैक्स कम हो सकता है

संपत्ति सुरक्षित रखी जा सकती है

कानूनी सुरक्षा मिलती है



---

पाँचवाँ सबक – अवसर पहचानो

Poor Dad अक्सर कहते थे – “मैं यह नहीं कर सकता।”
Rich Dad कहते थे – “मैं इसे कैसे कर सकता हूँ?”

अमीर लोग समस्याओं को अवसर में बदलते हैं।
रॉबर्ट ने सीखा कि डर और लालच दोनों को कंट्रोल करना जरूरी है:

डर: पैसे की कमी का डर लोगों को नौकरी में बाँध देता है

लालच: ज्यादा चाहत उन्हें खर्चीला बना देती है



---

छठा सबक – सीखने के लिए काम करो

Rich Dad ने कहा:

> “अगर अमीर बनना चाहते हो, तो सिर्फ पैसे के लिए काम मत करो, बल्कि कौशल (Skills) सीखो।”



रॉबर्ट ने सेल्स, मार्केटिंग, पब्लिक स्पीकिंग, अकाउंटिंग, और निवेश की ट्रेनिंग ली।
Poor Dad कहते – “ये सब काम मेरे स्तर के नीचे हैं।”
Rich Dad कहते – “हर अनुभव तुम्हें और अमीर बनाएगा।”


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सातवाँ सबक – Action लो

रॉबर्ट ने महसूस किया कि:

ज्यादातर लोग सोचते हैं, लेकिन करते नहीं।

अमीर बनने के लिए सीखना, प्रयोग करना और असफलताओं से न डरना जरूरी है।


Rich Dad का मंत्र:

> “बड़ा सोचो, छोटे से शुरू करो, लेकिन शुरू ज़रूर करो।”




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अमीर बनने के 10 कदम – Rich Dad की गाइड

1. अपने सपने को तय करो।


2. बड़ा लक्ष्य रखो।


3. वित्तीय ज्ञान बढ़ाओ।


4. खर्चों पर नियंत्रण रखो।


5. Assets में निवेश करो।


6. सही लोगों के साथ रहो।


7. छोटे से शुरू करो, धीरे-धीरे बढ़ाओ।


8. बाजार और अर्थव्यवस्था को समझो।


9. टेक्नोलॉजी और नए अवसर अपनाओ।


10. सीखना कभी बंद मत करो।




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कहानी का निष्कर्ष

रॉबर्ट के जीवन में दोनों पिताओं का गहरा प्रभाव रहा:

Poor Dad ने उसे शिक्षा, मेहनत, और ईमानदारी सिखाई।

Rich Dad ने उसे वित्तीय शिक्षा, निवेश, और अमीर बनने की सोच दी।


आखिर में रॉबर्ट ने समझा:

> “पैसा सिर्फ मेहनत से नहीं, बल्कि सही सोच, वित्तीय शिक्षा और समझदारी से बनता है।”

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कहानियों का जादुई बक्सा

लेखक परिचय

राजु कुमार चौधरी – (लेखक)

राजु कुमार चौधरी एक उत्साही और प्रेरक लेखक हैं, जो बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक और रोचक कहानियाँ लिखते हैं। उनका उद्देश्य बच्चों के जीवन में सकारात्मक सोच, नैतिक मूल्य और आत्मविश्वास को बढ़ावा देना है।

वे मानते हैं कि पढ़ाई सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होती, बल्कि जीवन में सीखने और सोचने की क्षमता भी जरूरी है। उनकी कहानियाँ बच्चों को मनोरंजन के साथ सीखने और सोचने की प्रेरणा देती हैं।

राजु कुमार चौधरी चाहते हैं कि हर बच्चा अपने सपनों का पीछा करे और मेहनत, ईमानदारी और मित्रता जैसे मूल्यों को अपनाए।


---

भाग 1 – नैतिक कहानियाँ

1. सच्चाई का इनाम

कहानी: रवि बटुआ सड़क पर पाता है और मालिक को लौटाता है।

चित्र सुझाव: रवि बटुआ उठाते हुए, सरपंच के घर लौटाते हुए, रामलाल जी आशीर्वाद देते हुए।

अभ्यास प्रश्न:

1. बटुआ किसका था?


2. रवि ने क्या किया?


3. इस कहानी से क्या सीख मिलती है?




2. मेहनत का फल

कहानी: मोहन मेहनत करता है, सोहन आलसी रहता है।

चित्र: मोहन खेत में काम करता, आलसी सोहन पेड़ के नीचे।

अभ्यास प्रश्न:

1. मेहनत का फल क्या मिला?


2. आलस्य का परिणाम क्या हुआ?




3. मित्रता की ताकत

कहानी: खरगोश और कछुआ मिलकर भेड़िए को पकड़ते हैं।

चित्र: योजना बनाते दोस्त, भेड़िया गड्ढे में गिरता।

अभ्यास प्रश्न:

1. मित्रता का महत्व क्या है?


2. दोस्ती में सबसे जरूरी गुण क्या है?




4. ज्ञान ही शक्ति है

कहानी: आरव प्रतियोगिता में हारता है और सीखता है कि ज्ञान सबसे बड़ी ताकत है।

चित्र: प्रतियोगिता का दृश्य, विजेता लड़का।

अभ्यास प्रश्न:

1. ज्ञान क्यों महत्वपूर्ण है?


2. आप सीखने के लिए क्या कर सकते हैं?





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भाग 2 – प्रेरणादायक कहानियाँ

5. सपनों का पंख

कहानी: नेहा पायलट बनने का सपना पूरा करती है।

चित्र: हवाई जहाज़ का मॉडल, छात्रवृत्ति।

अभ्यास प्रश्न:

1. नेहा का सपना क्या था?


2. मेहनत का महत्व क्या है?




6. छोटी सी मदद

कहानी: अंकित बुजुर्ग महिला की मदद करता है।

चित्र: सड़क पर टोकरी गिरना, अंकित मदद करता।

अभ्यास प्रश्न:

1. दयालुता क्यों जरूरी है?


2. आप किस तरह दूसरों की मदद कर सकते हैं?




7. हार मत मानो

कहानी: रोहित क्रिकेट में असफल होता है, मेहनत करता है और जीतता है।

चित्र: क्रिकेट अभ्यास, चयन का दिन।

अभ्यास प्रश्न:

1. असफलता से क्या सीखा?


2. मेहनत का महत्व क्या है?




8. मैं भी कर सकता हूँ

कहानी: सारा नाटक में हिस्सा लेकर आत्मविश्वास सीखती है।

चित्र: नाटक मंच पर, टीचर प्रोत्साहित करते।

अभ्यास प्रश्न:

1. खुद पर भरोसा क्यों जरूरी है?


2. आत्मविश्वास कैसे बढ़ाएं?





---

भाग 3 – पौराणिक और लोककथाएँ

9. अकबर-बीरबल की बुद्धि

कहानी: बीरबल दूसरों की मदद और सीखने की अहमियत बताते हैं।

चित्र: दरबार में बीरबल और अकबर।

अभ्यास प्रश्न:

1. सच्ची बुद्धिमानी क्या है?


2. आप दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं?




10. तेनालीराम की चालाकी

कहानी: तेनालीराम चोरी का पता लगाते हैं।

चित्र: तेनालीराम और चोर, चतुर योजना।

अभ्यास प्रश्न:

1. चालाकी का सही इस्तेमाल कैसे करें?


2. आप समस्या हल करने के लिए क्या कर सकते हैं?




11. पंचतंत्र की कहानियाँ

कहानी: बंदर और मगरमच्छ, लोमड़ी और अंगूर।

चित्र: जानवरों का संवाद।

अभ्यास प्रश्न:

1. जानवरों की कहानियों से क्या सीखते हैं?


2. किस कहानी से आपका पसंदीदा सबक क्या है?




12. महाभारत से सीख

कहानी: अर्जुन की एकाग्रता, दुर्योधन की लालच।

चित्र: युद्धभूमि, धनुष-बाण।

अभ्यास प्रश्न:

1. ध्यान और संयम क्यों जरूरी हैं?


2. आप ध्यान केंद्रित करने के लिए क्या कर सकते हैं?





---

भाग 4 – विज्ञान और जिज्ञासा

13. एक बूंद पानी का सफर

कहानी: पानी का चक्र, वर्षा और नदी।

चित्र: सूरज, बादल, नदी।

अभ्यास प्रश्न:

1. पानी का चक्र कैसे काम करता है?


2. हमें पानी क्यों बचाना चाहिए?




14. सूरज की यात्रा

कहानी: दिन और रात कैसे होते हैं।

चित्र: सूरज और पृथ्वी का घूमना।

अभ्यास प्रश्न:

1. पृथ्वी की गति क्यों महत्वपूर्ण है?


2. दिन और रात कैसे होते हैं?




15. पृथ्वी की गोद

कहानी: पेड़ों का महत्व, प्रदूषण।

चित्र: जंगल और शहर, पेड़ लगाते बच्चे।

अभ्यास प्रश्न:

1. पेड़ क्यों जरूरी हैं?


2. आप पर्यावरण कैसे बचा सकते हैं?




16. आविष्कार की कहानी

कहानी: बल्ब, टेलीफोन, इंटरनेट की खोज।

चित्र: आविष्कारक काम करते हुए, उपकरण।

अभ्यास प्रश्न:

1. आविष्कार क्यों महत्वपूर्ण हैं?


2. आप कौन सा नया आविष्कार करना चाहेंगे?

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कहानियों का जादुई बक्सा

लेखक परिचय

राजु कुमार चौधरी – (लेखक)

राजु कुमार चौधरी एक उत्साही और प्रेरक लेखक हैं, जो बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक और रोचक कहानियाँ लिखते हैं। उनका उद्देश्य बच्चों के जीवन में सकारात्मक सोच, नैतिक मूल्य और आत्मविश्वास को बढ़ावा देना है।

वे मानते हैं कि पढ़ाई सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होती, बल्कि जीवन में सीखने और सोचने की क्षमता भी जरूरी है। उनकी कहानियाँ बच्चों को मनोरंजन के साथ सीखने और सोचने की प्रेरणा देती हैं।

राजु कुमार चौधरी चाहते हैं कि हर बच्चा अपने सपनों का पीछा करे और मेहनत, ईमानदारी और मित्रता जैसे मूल्यों को अपनाए।


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भाग 1 – नैतिक कहानियाँ

1. सच्चाई का इनाम

कहानी: रवि बटुआ सड़क पर पाता है और मालिक को लौटाता है।

चित्र सुझाव: रवि बटुआ उठाते हुए, सरपंच के घर लौटाते हुए, रामलाल जी आशीर्वाद देते हुए।

अभ्यास प्रश्न:

1. बटुआ किसका था?


2. रवि ने क्या किया?


3. इस कहानी से क्या सीख मिलती है?




2. मेहनत का फल

कहानी: मोहन मेहनत करता है, सोहन आलसी रहता है।

चित्र: मोहन खेत में काम करता, आलसी सोहन पेड़ के नीचे।

अभ्यास प्रश्न:

1. मेहनत का फल क्या मिला?


2. आलस्य का परिणाम क्या हुआ?




3. मित्रता की ताकत

कहानी: खरगोश और कछुआ मिलकर भेड़िए को पकड़ते हैं।

चित्र: योजना बनाते दोस्त, भेड़िया गड्ढे में गिरता।

अभ्यास प्रश्न:

1. मित्रता का महत्व क्या है?


2. दोस्ती में सबसे जरूरी गुण क्या है?




4. ज्ञान ही शक्ति है

कहानी: आरव प्रतियोगिता में हारता है और सीखता है कि ज्ञान सबसे बड़ी ताकत है।

चित्र: प्रतियोगिता का दृश्य, विजेता लड़का।

अभ्यास प्रश्न:

1. ज्ञान क्यों महत्वपूर्ण है?


2. आप सीखने के लिए क्या कर सकते हैं?





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भाग 2 – प्रेरणादायक कहानियाँ

5. सपनों का पंख

कहानी: नेहा पायलट बनने का सपना पूरा करती है।

चित्र: हवाई जहाज़ का मॉडल, छात्रवृत्ति।

अभ्यास प्रश्न:

1. नेहा का सपना क्या था?


2. मेहनत का महत्व क्या है?




6. छोटी सी मदद

कहानी: अंकित बुजुर्ग महिला की मदद करता है।

चित्र: सड़क पर टोकरी गिरना, अंकित मदद करता।

अभ्यास प्रश्न:

1. दयालुता क्यों जरूरी है?


2. आप किस तरह दूसरों की मदद कर सकते हैं?




7. हार मत मानो

कहानी: रोहित क्रिकेट में असफल होता है, मेहनत करता है और जीतता है।

चित्र: क्रिकेट अभ्यास, चयन का दिन।

अभ्यास प्रश्न:

1. असफलता से क्या सीखा?


2. मेहनत का महत्व क्या है?




8. मैं भी कर सकता हूँ

कहानी: सारा नाटक में हिस्सा लेकर आत्मविश्वास सीखती है।

चित्र: नाटक मंच पर, टीचर प्रोत्साहित करते।

अभ्यास प्रश्न:

1. खुद पर भरोसा क्यों जरूरी है?


2. आत्मविश्वास कैसे बढ़ाएं?





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भाग 3 – पौराणिक और लोककथाएँ

9. अकबर-बीरबल की बुद्धि

कहानी: बीरबल दूसरों की मदद और सीखने की अहमियत बताते हैं।

चित्र: दरबार में बीरबल और अकबर।

अभ्यास प्रश्न:

1. सच्ची बुद्धिमानी क्या है?


2. आप दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं?




10. तेनालीराम की चालाकी

कहानी: तेनालीराम चोरी का पता लगाते हैं।

चित्र: तेनालीराम और चोर, चतुर योजना।

अभ्यास प्रश्न:

1. चालाकी का सही इस्तेमाल कैसे करें?


2. आप समस्या हल करने के लिए क्या कर सकते हैं?




11. पंचतंत्र की कहानियाँ

कहानी: बंदर और मगरमच्छ, लोमड़ी और अंगूर।

चित्र: जानवरों का संवाद।

अभ्यास प्रश्न:

1. जानवरों की कहानियों से क्या सीखते हैं?


2. किस कहानी से आपका पसंदीदा सबक क्या है?




12. महाभारत से सीख

कहानी: अर्जुन की एकाग्रता, दुर्योधन की लालच।

चित्र: युद्धभूमि, धनुष-बाण।

अभ्यास प्रश्न:

1. ध्यान और संयम क्यों जरूरी हैं?


2. आप ध्यान केंद्रित करने के लिए क्या कर सकते हैं?





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भाग 4 – विज्ञान और जिज्ञासा

13. एक बूंद पानी का सफर

कहानी: पानी का चक्र, वर्षा और नदी।

चित्र: सूरज, बादल, नदी।

अभ्यास प्रश्न:

1. पानी का चक्र कैसे काम करता है?


2. हमें पानी क्यों बचाना चाहिए?




14. सूरज की यात्रा

कहानी: दिन और रात कैसे होते हैं।

चित्र: सूरज और पृथ्वी का घूमना।

अभ्यास प्रश्न:

1. पृथ्वी की गति क्यों महत्वपूर्ण है?


2. दिन और रात कैसे होते हैं?




15. पृथ्वी की गोद

कहानी: पेड़ों का महत्व, प्रदूषण।

चित्र: जंगल और शहर, पेड़ लगाते बच्चे।

अभ्यास प्रश्न:

1. पेड़ क्यों जरूरी हैं?


2. आप पर्यावरण कैसे बचा सकते हैं?




16. आविष्कार की कहानी

कहानी: बल्ब, टेलीफोन, इंटरनेट की खोज।

चित्र: आविष्कारक काम करते हुए, उपकरण।

अभ्यास प्रश्न:

1. आविष्कार क्यों महत्वपूर्ण हैं?


2. आप कौन सा नया आविष्कार करना चाहेंगे?

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📖 कहानी की शुरुआत

यह कहानी है एक लड़के रॉबर्ट की, जो हवाई (Hawaii) में पला-बढ़ा। उसके दो पिता थे — एक उसके असली पिता (Poor Dad) और दूसरा उसके सबसे अच्छे दोस्त माइक का पिता (Rich Dad)।

Poor Dad – पढ़ाई में बहुत तेज, अच्छी सरकारी नौकरी, ऊँची डिग्री, लेकिन महीने की सैलरी खत्म होते ही जेब खाली। सोच: “पढ़ाई करो, नौकरी लो, सुरक्षित जिंदगी जियो।”

Rich Dad – औपचारिक शिक्षा कम, लेकिन बिजनेस और पैसे का गहरा ज्ञान। सोच: “पैसे को अपने लिए काम करवाओ, Assets बनाओ।”


रॉबर्ट दोनों के बीच का फर्क देखकर हैरान था। एक पढ़ा-लिखा और सम्मानित, फिर भी पैसों के मामले में संघर्षरत। दूसरा कम पढ़ा-लिखा, फिर भी अमीर और सफल।


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पहला सबक – पैसे के लिए मत काम करो

एक दिन रॉबर्ट और माइक ने Rich Dad से कहा:

> “हम अमीर बनना चाहते हैं, हमें सिखाइए।”



Rich Dad ने मुस्कुराते हुए कहा:

> “ठीक है, मेरी दुकान में काम करो — लेकिन बहुत कम वेतन पर।”



दोनों लड़के काम करने लगे, लेकिन जल्दी ही शिकायत करने लगे:

> “ये तो शोषण है! हमें ज्यादा पैसे चाहिए।”



Rich Dad ने समझाया:

> “यही तो फर्क है गरीब और अमीर सोच में। गरीब और मध्यम वर्ग के लोग पैसे के लिए काम करते हैं, लेकिन अमीर लोग ऐसे अवसर ढूँढते हैं जिससे पैसा उनके लिए काम करे। सैलरी के जाल में मत फँसो।”



यह बात रॉबर्ट के दिल में उतर गई — "पैसे के लिए काम मत करो, पैसे को अपने लिए काम करवाओ।"


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दूसरा सबक – वित्तीय शिक्षा लो

Rich Dad ने रॉबर्ट को एक कागज़ पर दो कॉलम बनाने को कहा:

Assets (संपत्ति) – जो जेब में पैसा डालें

Liabilities (दायित्व) – जो जेब से पैसा निकालें


फिर कहा:

> “अमीर लोग Assets खरीदते हैं, गरीब लोग Liabilities को Assets समझकर खरीद लेते हैं।”



उदाहरण:

किराये का घर – Asset (क्योंकि किराया आता है)

EMI पर लिया घर – Liability (क्योंकि किस्त जाती है)


Poor Dad की सोच थी – “अपना घर सबसे अच्छा निवेश है।”
Rich Dad की सोच थी – “अपना घर तब तक Asset नहीं जब तक वह आपके जेब में पैसा न डाल दे।”


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तीसरा सबक – बिजनेस बनाओ, नौकरी के भरोसे मत रहो

Poor Dad कहते थे – “अच्छी नौकरी लो।”
Rich Dad कहते थे – “अपना खुद का बिजनेस बनाओ, और साइड में Assets बढ़ाओ।”

रॉबर्ट ने समझा:

नौकरी से Active Income आती है (जब तक काम कर रहे हो)

बिजनेस और निवेश से Passive Income आती है (बिना काम के भी)



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चौथा सबक – टैक्स और कंपनियों का खेल

Rich Dad ने टैक्स के बारे में सिखाया:

सैलरी पाने वाला पहले टैक्स देता है, फिर बची रकम खर्च करता है।

बिजनेस मालिक पहले खर्च करता है, फिर जो बचा उस पर टैक्स देता है।


कंपनी बनाकर:

टैक्स कम हो सकता है

संपत्ति सुरक्षित रखी जा सकती है

कानूनी सुरक्षा मिलती है



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पाँचवाँ सबक – अवसर पहचानो

Poor Dad अक्सर कहते थे – “मैं यह नहीं कर सकता।”
Rich Dad कहते थे – “मैं इसे कैसे कर सकता हूँ?”

अमीर लोग समस्याओं को अवसर में बदलते हैं।
रॉबर्ट ने सीखा कि डर और लालच दोनों को कंट्रोल करना जरूरी है:

डर: पैसे की कमी का डर लोगों को नौकरी में बाँध देता है

लालच: ज्यादा चाहत उन्हें खर्चीला बना देती है



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छठा सबक – सीखने के लिए काम करो

Rich Dad ने कहा:

> “अगर अमीर बनना चाहते हो, तो सिर्फ पैसे के लिए काम मत करो, बल्कि कौशल (Skills) सीखो।”



रॉबर्ट ने सेल्स, मार्केटिंग, पब्लिक स्पीकिंग, अकाउंटिंग, और निवेश की ट्रेनिंग ली।
Poor Dad कहते – “ये सब काम मेरे स्तर के नीचे हैं।”
Rich Dad कहते – “हर अनुभव तुम्हें और अमीर बनाएगा।”


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सातवाँ सबक – Action लो

रॉबर्ट ने महसूस किया कि:

ज्यादातर लोग सोचते हैं, लेकिन करते नहीं।

अमीर बनने के लिए सीखना, प्रयोग करना और असफलताओं से न डरना जरूरी है।


Rich Dad का मंत्र:

> “बड़ा सोचो, छोटे से शुरू करो, लेकिन शुरू ज़रूर करो।”




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अमीर बनने के 10 कदम – Rich Dad की गाइड

1. अपने सपने को तय करो।


2. बड़ा लक्ष्य रखो।


3. वित्तीय ज्ञान बढ़ाओ।


4. खर्चों पर नियंत्रण रखो।


5. Assets में निवेश करो।


6. सही लोगों के साथ रहो।


7. छोटे से शुरू करो, धीरे-धीरे बढ़ाओ।


8. बाजार और अर्थव्यवस्था को समझो।


9. टेक्नोलॉजी और नए अवसर अपनाओ।


10. सीखना कभी बंद मत करो।




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कहानी का निष्कर्ष

रॉबर्ट के जीवन में दोनों पिताओं का गहरा प्रभाव रहा:

Poor Dad ने उसे शिक्षा, मेहनत, और ईमानदारी सिखाई।

Rich Dad ने उसे वित्तीय शिक्षा, निवेश, और अमीर बनने की सोच दी।


आखिर में रॉबर्ट ने समझा:

> “पैसा सिर्फ मेहनत से नहीं, बल्कि सही सोच, वित्तीय शिक्षा और समझदारी से बनता है।”

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📖 पुस्तक का परिचय

लेखक: रॉबर्ट कियोसाकी (Robert T. Kiyosaki)

प्रकाशन वर्ष: 1997

शैली: Personal Finance / Self-help

मुख्य विषय: पैसे का सही उपयोग, अमीर बनने की सोच, वित्तीय स्वतंत्रता, निवेश


यह किताब रॉबर्ट कियोसाकी के जीवन के दो “पिताओं” की कहानी पर आधारित है:

1. Poor Dad (गरीब पिता) – उनके असली पिता, एक highly educated लेकिन financial ज्ञान में कमजोर व्यक्ति। सरकारी नौकरी करते थे और पारंपरिक सोच रखते थे – "पढ़ाई करो, नौकरी पाओ, और सुरक्षित जिंदगी जियो।"


2. Rich Dad (अमीर पिता) – उनके दोस्त माइक के पिता, जिनकी औपचारिक शिक्षा कम थी लेकिन पैसे को समझने और उसे बढ़ाने की कला थी। उन्होंने रॉबर्ट को व्यवसाय और निवेश के बारे में सिखाया।



रॉबर्ट ने दोनों पिताओं से अलग-अलग सोच और आदतें सीखी, और उनकी तुलना से यह किताब तैयार हुई।


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1. अमीर और गरीब सोच का अंतर

लेखक बताते हैं कि अमीर और गरीब के बीच सबसे बड़ा फर्क सोच और पैसे को देखने का नजरिया है।

गरीब पिता कहते थे:

“अच्छी पढ़ाई करो, अच्छी नौकरी लो।”

पैसे के लिए काम करो।

कर्ज से दूर रहो।

जोखिम से बचो।


अमीर पिता कहते थे:

“पैसे को अपने लिए काम कराओ।”

व्यवसाय और निवेश सीखो।

संपत्ति (Assets) बढ़ाओ, देनदारियाँ (Liabilities) कम करो।

वित्तीय शिक्षा लो, सिर्फ डिग्री नहीं।




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2. पैसे के लिए काम मत करो – पैसे को आपके लिए काम करने दो

जब रॉबर्ट और माइक ने Rich Dad से पैसे कमाने का तरीका सीखने की इच्छा जताई, तो उन्होंने उन्हें एक दुकान में कम वेतन पर काम कराया।

शुरुआत में वे शिकायत करने लगे, लेकिन Rich Dad ने समझाया कि असली शिक्षा पैसे के लिए काम करने में नहीं, बल्कि पैसा कमाने के नए तरीके ढूँढने में है।

ज्यादातर लोग "सैलरी" के जाल में फँस जाते हैं और कभी आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो पाते।



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3. वित्तीय शिक्षा का महत्व

स्कूल हमें पैसे कमाने के तरीकों की बजाय नौकरी के लिए पढ़ाते हैं। लेकिन:

वित्तीय साक्षरता (Financial Literacy) जरूरी है, जिसमें शामिल है:

Income Statement (आय विवरण)

Balance Sheet (बैलेंस शीट)

Assets और Liabilities का फर्क समझना



Asset vs Liability

Asset (संपत्ति): जो आपकी जेब में पैसा डालता है (जैसे – निवेश, किराये की संपत्ति, स्टॉक्स, बिजनेस)

Liability (दायित्व): जो आपकी जेब से पैसा निकालता है (जैसे – महंगी कार, घर का EMI, क्रेडिट कार्ड का कर्ज)


सीख: अमीर लोग पहले Assets खरीदते हैं, गरीब लोग Liabilities को Assets समझकर खरीदते हैं।


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4. अपना खुद का व्यवसाय बनाओ

Rich Dad सिखाते हैं कि:

नौकरी करते समय भी अपना Asset बनाते रहो।

सिर्फ "Income" पर निर्भर मत रहो, बल्कि "Passive Income" (बिना मेहनत का पैसा) के स्रोत तैयार करो।

बिजनेस और निवेश के बारे में सीखो, भले ही शुरुआत में असफल हो जाओ।



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5. टैक्स और कंपनियों का खेल समझो

अमीर लोग कंपनियों का उपयोग करके:

टैक्स कम करते हैं (क्योंकि कंपनी के खर्च पहले घटाए जाते हैं, फिर टैक्स लगता है)

संपत्ति सुरक्षित रखते हैं

कानूनी लाभ उठाते हैं


उदाहरण:

सैलरी पाने वाला पहले टैक्स देता है, फिर जो बचा उसमें खर्च करता है।

बिजनेस मालिक पहले खर्च करता है, फिर बची रकम पर टैक्स देता है।



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6. अमीर लोग अवसर बनाते हैं

गरीब लोग अक्सर "मैं नहीं कर सकता" सोचते हैं।

अमीर लोग सोचते हैं, "मैं इसे कैसे कर सकता हूँ?"

पैसा बनाने के लिए रचनात्मक सोच और साहस चाहिए।

असफलता से डरने के बजाय, उससे सीखना जरूरी है।



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7. सीखने के लिए काम करो, पैसे के लिए नहीं

Rich Dad ने रॉबर्ट को अलग-अलग काम सीखने के लिए प्रेरित किया:

मार्केटिंग, सेल्स, कम्युनिकेशन, अकाउंटिंग, निवेश आदि।

नौकरी को सीखने का अवसर मानो, न कि सिर्फ कमाई का जरिया।



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8. डर और लालच का चक्र

डर (Fear): पैसे की कमी का डर लोगों को सिर्फ सैलरी वाली नौकरी तक सीमित रखता है।

लालच (Greed): ज्यादा चाहत उन्हें खर्चीला बना देती है।

अमीर लोग इस चक्र से बाहर निकलने के लिए वित्तीय ज्ञान का उपयोग करते हैं।



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9. एक्शन लो – सिर्फ सोचो मत

ज्यादातर लोग "Knowledge" तो रखते हैं लेकिन "Action" नहीं लेते।

अमीर बनने के लिए अभ्यास, असफलता, और लगातार सीखना जरूरी है।



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10. अमीर बनने के 10 कदम (Rich Dad के अनुसार)

1. आर्थिक स्वतंत्रता का सपना तय करो।


2. बड़ा लक्ष्य रखो।


3. वित्तीय शिक्षा लो।


4. खर्चों पर नियंत्रण रखो।


5. Assets में निवेश करो।


6. खुद को अच्छे लोगों से घेरो।


7. छोटे से शुरू करो, धीरे-धीरे बढ़ाओ।


8. बाजार और अर्थव्यवस्था को समझो।


9. टेक्नोलॉजी और नए अवसर अपनाओ।


10. कभी सीखना बंद मत करो।




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पुस्तक से मुख्य सीख

पैसों के लिए काम मत करो, पैसे को आपके लिए काम करने दो।

Asset और Liability का फर्क समझो और Asset बढ़ाओ।

वित्तीय शिक्षा सबसे जरूरी है।

जोखिम लेने और असफलता से डरने के बजाय, उससे सीखो।

Passive Income के स्रोत बनाओ।

टैक्स और कानूनी नियमों को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करो।



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निष्कर्ष

"Rich Dad Poor Dad" सिर्फ अमीर बनने की गाइड नहीं, बल्कि सोच बदलने की किताब है।
यह हमें बताती है कि पैसा सिर्फ मेहनत से नहीं, बल्कि सही वित्तीय ज्ञान और समझदारी भरे फैसलों से बनता है।

अगर आप आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना चाहते हैं, तो:

अपनी वित्तीय शिक्षा में निवेश करें

Assets बढ़ाएँ, Liabilities घटाएँ

और सबसे जरूरी – Action लें

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📖 कहानी की शुरुआत

यह कहानी है एक लड़के रॉबर्ट की, जो हवाई (Hawaii) में पला-बढ़ा। उसके दो पिता थे — एक उसके असली पिता (Poor Dad) और दूसरा उसके सबसे अच्छे दोस्त माइक का पिता (Rich Dad)।

Poor Dad – पढ़ाई में बहुत तेज, अच्छी सरकारी नौकरी, ऊँची डिग्री, लेकिन महीने की सैलरी खत्म होते ही जेब खाली। सोच: “पढ़ाई करो, नौकरी लो, सुरक्षित जिंदगी जियो।”

Rich Dad – औपचारिक शिक्षा कम, लेकिन बिजनेस और पैसे का गहरा ज्ञान। सोच: “पैसे को अपने लिए काम करवाओ, Assets बनाओ।”


रॉबर्ट दोनों के बीच का फर्क देखकर हैरान था। एक पढ़ा-लिखा और सम्मानित, फिर भी पैसों के मामले में संघर्षरत। दूसरा कम पढ़ा-लिखा, फिर भी अमीर और सफल।


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पहला सबक – पैसे के लिए मत काम करो

एक दिन रॉबर्ट और माइक ने Rich Dad से कहा:

> “हम अमीर बनना चाहते हैं, हमें सिखाइए।”



Rich Dad ने मुस्कुराते हुए कहा:

> “ठीक है, मेरी दुकान में काम करो — लेकिन बहुत कम वेतन पर।”



दोनों लड़के काम करने लगे, लेकिन जल्दी ही शिकायत करने लगे:

> “ये तो शोषण है! हमें ज्यादा पैसे चाहिए।”



Rich Dad ने समझाया:

> “यही तो फर्क है गरीब और अमीर सोच में। गरीब और मध्यम वर्ग के लोग पैसे के लिए काम करते हैं, लेकिन अमीर लोग ऐसे अवसर ढूँढते हैं जिससे पैसा उनके लिए काम करे। सैलरी के जाल में मत फँसो।”



यह बात रॉबर्ट के दिल में उतर गई — "पैसे के लिए काम मत करो, पैसे को अपने लिए काम करवाओ।"


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दूसरा सबक – वित्तीय शिक्षा लो

Rich Dad ने रॉबर्ट को एक कागज़ पर दो कॉलम बनाने को कहा:

Assets (संपत्ति) – जो जेब में पैसा डालें

Liabilities (दायित्व) – जो जेब से पैसा निकालें


फिर कहा:

> “अमीर लोग Assets खरीदते हैं, गरीब लोग Liabilities को Assets समझकर खरीद लेते हैं।”



उदाहरण:

किराये का घर – Asset (क्योंकि किराया आता है)

EMI पर लिया घर – Liability (क्योंकि किस्त जाती है)


Poor Dad की सोच थी – “अपना घर सबसे अच्छा निवेश है।”
Rich Dad की सोच थी – “अपना घर तब तक Asset नहीं जब तक वह आपके जेब में पैसा न डाल दे।”


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तीसरा सबक – बिजनेस बनाओ, नौकरी के भरोसे मत रहो

Poor Dad कहते थे – “अच्छी नौकरी लो।”
Rich Dad कहते थे – “अपना खुद का बिजनेस बनाओ, और साइड में Assets बढ़ाओ।”

रॉबर्ट ने समझा:

नौकरी से Active Income आती है (जब तक काम कर रहे हो)

बिजनेस और निवेश से Passive Income आती है (बिना काम के भी)



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चौथा सबक – टैक्स और कंपनियों का खेल

Rich Dad ने टैक्स के बारे में सिखाया:

सैलरी पाने वाला पहले टैक्स देता है, फिर बची रकम खर्च करता है।

बिजनेस मालिक पहले खर्च करता है, फिर जो बचा उस पर टैक्स देता है।


कंपनी बनाकर:

टैक्स कम हो सकता है

संपत्ति सुरक्षित रखी जा सकती है

कानूनी सुरक्षा मिलती है



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पाँचवाँ सबक – अवसर पहचानो

Poor Dad अक्सर कहते थे – “मैं यह नहीं कर सकता।”
Rich Dad कहते थे – “मैं इसे कैसे कर सकता हूँ?”

अमीर लोग समस्याओं को अवसर में बदलते हैं।
रॉबर्ट ने सीखा कि डर और लालच दोनों को कंट्रोल करना जरूरी है:

डर: पैसे की कमी का डर लोगों को नौकरी में बाँध देता है

लालच: ज्यादा चाहत उन्हें खर्चीला बना देती है



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छठा सबक – सीखने के लिए काम करो

Rich Dad ने कहा:

> “अगर अमीर बनना चाहते हो, तो सिर्फ पैसे के लिए काम मत करो, बल्कि कौशल (Skills) सीखो।”



रॉबर्ट ने सेल्स, मार्केटिंग, पब्लिक स्पीकिंग, अकाउंटिंग, और निवेश की ट्रेनिंग ली।
Poor Dad कहते – “ये सब काम मेरे स्तर के नीचे हैं।”
Rich Dad कहते – “हर अनुभव तुम्हें और अमीर बनाएगा।”


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सातवाँ सबक – Action लो

रॉबर्ट ने महसूस किया कि:

ज्यादातर लोग सोचते हैं, लेकिन करते नहीं।

अमीर बनने के लिए सीखना, प्रयोग करना और असफलताओं से न डरना जरूरी है।


Rich Dad का मंत्र:

> “बड़ा सोचो, छोटे से शुरू करो, लेकिन शुरू ज़रूर करो।”




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अमीर बनने के 10 कदम – Rich Dad की गाइड

1. अपने सपने को तय करो।


2. बड़ा लक्ष्य रखो।


3. वित्तीय ज्ञान बढ़ाओ।


4. खर्चों पर नियंत्रण रखो।


5. Assets में निवेश करो।


6. सही लोगों के साथ रहो।


7. छोटे से शुरू करो, धीरे-धीरे बढ़ाओ।


8. बाजार और अर्थव्यवस्था को समझो।


9. टेक्नोलॉजी और नए अवसर अपनाओ।


10. सीखना कभी बंद मत करो।




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कहानी का निष्कर्ष

रॉबर्ट के जीवन में दोनों पिताओं का गहरा प्रभाव रहा:

Poor Dad ने उसे शिक्षा, मेहनत, और ईमानदारी सिखाई।

Rich Dad ने उसे वित्तीय शिक्षा, निवेश, और अमीर बनने की सोच दी।


आखिर में रॉबर्ट ने समझा:

> “पैसा सिर्फ मेहनत से नहीं, बल्कि सही सोच, वित्तीय शिक्षा और समझदारी से बनता है।”

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स्वर्ग की अप्सरा तुम, दिव्य रूप धारी
नृत्य करतीं स्वर्ग में, अप्सरा तुम्हारी
गंधर्वों के साथ में, सुरों की ताल पर
नाचतीं तुम स्वर्ग में, अद्भुत सौंदर्य धार

तुम्हारे बालों में, फूलों की माला
तुम्हारे चेहरे पर, मुस्कान की लहर
तुम्हारे नृत्य में, स्वर्ग की झलक
तुम्हारी सुंदरता, हृदय को छू ले

स्वर्ग की अप्सरा, तुम्हारी कहानी
एक अद्भुत कथा, जो हृदय को छू जाए
तुम्हारी सुंदरता, स्वर्ग की शोभा
तुम्हारा नृत्य, हृदय को मोह ले।https://hindi.matrubharti.com/series/स्वर्ग-की-अप्सरा-मेनिका-की-सच्ची-गाथा-idskaia5fcya?language=HINDI&utm_source=android&utm_medium=content_series_share

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# पहली और आखिरी मोहब्बत

## पहली मुलाकात

शहर की भीड़ में, रिया और अर्जुन पहली बार कॉलेज की लाइब्रेरी में मिले थे। दोनों एक ही किताब ढूंढ रहे थे — "गुलाबों की खुशबू"। अर्जुन ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, **"शायद ये किताब आपको पहले मिलनी चाहिए… पर एक शर्त है — इसे पढ़कर अपनी राय मुझसे ज़रूर शेयर करें।"**

## दोस्ती से मोहब्बत तक

धीरे-धीरे मुलाक़ातें बढ़ीं, बातें लंबी होने लगीं, और रिया को एहसास हुआ कि अर्जुन सिर्फ़ उसकी किताबों की पसंद नहीं, बल्कि उसकी धड़कनों को भी समझने लगा है। उनकी दोस्ती ने एक गहरी मोहब्बत का रूप लेना शुरू कर दिया।

## बारिश में इज़हार

एक शाम बारिश में, छतरी के नीचे, अर्जुन ने रिया की आँखों में देखते हुए कहा — *"मुझे नहीं पता भविष्य में क्या होगा, लेकिन आज… तुम ही मेरी कहानी हो।"* यह सुनकर रिया की आँखों में चमक आ गई और एक नई शुरुआत का एहसास हुआ।

## समय की परीक्षा

वक़्त बीता, कॉलेज ख़त्म हुआ, दोनों ने अपने-अपने करियर की शुरुआत की। दूरी आई, मगर मोहब्बत उतनी ही गहरी रही। उनकी बातचीत और मुलाकातें भले ही कम हो गईं, लेकिन दिलों के बीच की दूरी कभी नहीं बनी।

## प्रस्ताव

एक दिन, अर्जुन ने रिया को उसी लाइब्रेरी में बुलाया, जहाँ वे पहली बार मिले थे। किताब के बीच में एक छोटी सी अंगूठी रखी थी और एक पन्ने पर लिखा था — **"तुम मेरी पहली और आखिरी मोहब्बत हो, क्या तुम मेरी जिंदगी बनोगी?"**

रिया ने मुस्कुराते हुए अर्जुन की तरफ देखा और उसकी आँखों में वही प्यार और वादा पाया, जो उसने पहली बार महसूस किया था। यह एक नई शुरुआत की ओर बढ़ने का वक्त था, एक ऐसी शुरुआत जो कभी खत्म नहीं होने वाली थी।

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