🌧️ बरसात में काना 🌧️
बरसात आई, बदरिया घिरी,
मोर नाचे, वृंदावन हरी।
बूँद-बूँद में तेरा रूप समाया,
कोयल बोली, “मोहन आयो, घनन घन छाया!”
बरखा की हर बूँद कहे तेरा नाम,
“कृष्ण-कन्हैया” का बहे वृंदावन में गान।
यशोदा मैया खड़ी द्वार पे देखे राह,
“मेरे लाला लौट आएं”, यही करे चाह।
माखन थाली में, आंखों में नमी,
हर बूँद बोले, “काना की मइया तू धन्य बनी।”
नंद बाबा बोले, “गोकुल का धन वही,
जिसने लाठी से संसार को राह दी।”
बरसात में जब गायें लौटतीं हर्षाए,
तो बाबा की आंखें भीगें — पर मन मुस्काए।
वृज के ग्वाले, गोपियां, सखियाँ, सब हर्षाएं,
कृष्ण लीला के गीत बूँदों संग गाएं।
पेड़ों पे झूले, हंसी की बौछार,
हर मन कहे — “कान्हा, तू ही हमारा प्यार।”
जब बिजली चमके, मन घबराए,
तो लागे तू बांसुरी बजाए।
मिट्टी की खुशबू बोले मधुर बात,
“तेरे बिना सूनी लागे हर बात।”
राधा खड़ी निहारती अम्बर की ओर,
भीगे आँचल में छुपा हर चुप्पा शोर।
कहे हर बूँद — "राधे रानी तू धन्य है महान,
तेरे प्रेम बिना अधूरा है सारा ब्रह्मांड का गान।”
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