Hindi Quote in News by Sonu Kumar Gami

News quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

रतन टाटा के बारे में कोई महत्वपूर्ण जानकारी क्या हो सकती है ?

गोरे जब भारत से गए तो अपने वफ़ादार जवाहर लाल को लाल क़िला और टाटा को झारखंड में अगले 999 वर्षों तक कोयला खोदने के राइट्स लगभग फ़्री में देकर चले गये थे !!

A Tata Coalgate? 999-yr mine lease at 25p a bigha! - A Tata Coalgate? 999-yr mine lease at 25p a bigha!

नागरिकों की इस संपत्ति को टाटा ने लूटा और लूट के इस पैसे के लगभग 20% हिस्से का निम्नवत बँटवारा किया :

(1) लूट का एक हिस्सा मीडिया पर खर्च किया ताकि इस लूट के बारे में जनता को पता न लगे।

(2) कुछ हिस्सा नेताओ पर खर्च किया ताकि प्रधानमंत्री / मुख्यमंत्री आदि गोरो द्वारा दिये गये मुफ़्त के ये माइनिंग राइट्स ख़त्म न कर दे।

(3) एक हिस्सा चैरिटी पर खर्च किया, और जितना चैरिटी पर खर्च किया उसका 4 गुणा इस चैरिटी को प्रचारित करने में खर्च किया। ताकि अपनी छवि चमका कर रखी जा सके।

डाकू ज़ालिम सिंह भी जब डाका डालते थे, तो लूट के माल को जायज़ और नैतिक बनाने के लिए कबूतरों के आगे धान और गायों को चारा डाल दिया करते थे।

पर ज़ालिम सिंह और टाटा में एक फ़र्क़ है -

चूँकि ज़ालिम सिंह उच्च शिक्षित नहीं थे इसीलिए 100 रू लोगो से लूटते थे और 20 रू कबूतरों और गायों के खाते में खर्च कर देते थे। दूसरे शब्दों में उन्होंने पैसा ताकतवर से खींचकर कमजोरो की तरफ़ भेजा। और बदनाम हुए।

पर टाटा अलग ही तरह के रॉबिनहुड थे। वे नागरिकों का 100 रू लूटते थे तो उसमें से 80% ख़ुद रख लेते थे, 20% मीडिया कर्मियों, जजो और नेताओ जैसे ताकतवर लोगो को दे देते थे, और सिर्फ़ 5% की चिल्लर चैरिटी के रूप में उन नागरिकों पर खर्च कर देते थे, जिनसे 100 रू लूटा गया है !! और चैरिटी पे खर्च की गई राशि के बराबर टैक्स में छूट भी प्राप्त कर लेते थे। इस तरह दान दिया गया यह पैसा फिर से उनके पास लौट आता था।


महान आदमी थे। बिना घुमाव फ़िराव के प्लेन बिज़नेस करते थे। फ़्री में कोयला खोदते थे, और बाज़ार में बेच देते थे। न रॉयल्टी जमा कराने का झंझट न हिसाब किताब का झगड़ा। जिस भी भाव में बिके, पूरा मुनाफ़ा ही है।

यदि खनिज रॉयल्टी सीधे नागरिकों के खाते में भेजने का क़ानून पास कर दिया जाता तो प्रत्येक नागरिक को प्रति महीने 3,000 (पाँच सदस्यीय परिवार को 3,000x5= 15,000 महीना) प्राप्त होता है। पर चूँकि टाटा मुफ़्त में कोयला खोद रहे थे, और रॉयल्टी नहीं चुकाना चाहते थे, अत: रतन टाटा ने अंतिम साँस तक “खनिज का पैसा सीधे नागरिकों के खाते में भेजने” के क़ानून का विरोध किया।

टाटा ने देश की बेंड बजाने के लिए और क्या क्या कांड किए है, इस बारे फिर कभी और विस्तार से लिखा जाएगा।

हमारे यहाँ परंपरा है कि परलोक सिधार चुके व्यक्ति की निंदा नहीं की जाती। पर मेरे विचार में यह बात ठीक नहीं है। व्यक्ति के सत्कर्मों के साथ ही कुकर्मों को भी इंगित किया जाना चाहिए। और ऐसा करना तब और भी अपरिहार्य हो जाता है जब किसी व्यक्ति के कर्म सार्वजनिक हितों (larger public interest) प्रभावित करते हो। वर्तमान में भी और भविष्य में भी।

एक प्रश्न यह है कि, टाटा ने जो अच्छे काम किए मुझे उस पर भी तो लिखना चाहिए, मैं सिर्फ़ उनके कुकर्मों पर ही क्यों लिख रहा हूँ, सत्कर्मों पर क्यों नहीं ?

जवाब यह है कि उनके सत्कर्मों की चर्चा प्रसारित करने के लिये कई लाख करोड़ का पूरा टाटा ग्रुप+पेड मीडिया मौजूद है, और अपना काम 1946 से ही भलीभाँति कर रहे है। कुकर्मों के बारे में कोई नहीं कर रहा। इसीलिए हम संतुलन लाने का प्रयास कर रहे है।

चूँकी अब वे मोह-माया के बंधन से मुक्त होकर परलोक गमन कर चुके है, अत: ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

.

Hindi News by Sonu Kumar Gami : 111972348
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now