"इलाहाबाद की मोहब्बत"
- KunalKPS
इलाहाबाद की गलियों में तेरा नाम बसा,
संगम के पानी सा मेरा प्यार बहा।
रतन की धड़कन में बसती है केशी,
पर मोहब्बत उसकी एकतरफा रहा।।
सिविल लाइंस की ठंडी हवाओं में,
तेरी खुशबू हर ओर मिलती है।
यूनिवर्सिटी के उन रास्तों पर,
तेरी आहट आज भी गूंजती है।।
गंगा किनारे बैठा सोचता हूँ,
काश तू मेरी बाहों में होती।
संगम की लहरें गवाही देतीं,
तेरे संग मेरी कहानी होती।।
लाइब्रेरी में तेरा इंतज़ार करता,
तेरी किताबों को छूकर गुजरता।
हर नोट्स में तेरा नाम ढूँढता,
तेरी हर बात को शब्दों में रखता।।
तु जो संगम किनारे खड़ी होती,
तो मेरा दिल वहां रुका रहता।
तेरी हँसी जब हवा में उड़ती,
तो मेरा दिल भी मुस्कुरा उठता।।
पर यह इश्क़ मेरी तक़दीर नहीं,
बस एकतरफा प्यार की तस्वीर सही।
रतन इलाहाबाद में केशी के साथ पढ़ता है,
पर उसकी मोहब्बत अब भी अधूरी रही।।