"ज़िन्दगी का हाल"
ज़िन्दगी का कैसा मैं ये हाल कर बैठी,
कितने खराब गुज़रे हुए साल कर बैठी।
ये सूनी आँखें, मायूसी, ये बुझती रंगत,
फीका चेहरे का नूर-ओ-ज़माल कर बैठी।
आईने में अपना अक्स भी अंजाना लगा,
ख़ुद से ही अपने वजूद पर सवाल कर बैठी।
ख्वाहिशों की आग में खुद को राख़ कर बैठी,
एक ख़्वाब को हक़ीक़त का ख्याल कर बैठी।
मर ही जाती अग़र कलम ना मिली होती,
कज़ा पास दिखी तो फिर अहवाल कर बैठी।
"कीर्ति" किस बात का अब मलाल कर बैठी,
क्यों आधी रात को ये आँखें लाल कर बैठी।
Kirti Kashyap "एक शायरा"✍️