Hindi Quote in Blog by Agyat Agyani

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शास्त्र, मंदिर और आज का धर्म ✧

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शास्त्र और मंदिर – समर्पण के प्रमाण

भारत के इतिहास को देखें तो शास्त्र और मंदिर दोनों ही अत्यंत ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण हैं।
ऋषि-मुनियों ने शास्त्र रचे, और राजा-महाराजाओं ने धन देकर मंदिर खड़े किए।
यह प्रमाण हैं कि – ‘हम नहीं, मैं नहीं, मेरे नहीं – सब उस ईश्वर के हैं।’
मंदिर ईश्वर-समर्पण के महान प्रमाण हैं।

मंदिर – केवल संकेत, न कि अनुभव

लेकिन आज मंदिरों में पूजा-पाठ और दर्शन का कोई वास्तविक मूल्य नहीं रहा।
यह तो केवल संकेत और प्रमाण हैं उस अनुभूति के – जैसे बुद्ध ने कहा:
“मैं नहीं हूं, वही है।”
जिनके पास सम्पदा थी, उन्हें भी शांति तब मिली जब यह बोध हुआ कि ‘मैं नहीं हूं’ –
मंदिर उसी बोध की अभिव्यक्ति हैं।

विज्ञान और आत्मा – संतुलन का धर्म

यदि सब कुछ ‘मेरा’ होता, तो केवल विज्ञान पैदा होती।
भारत में पहले विज्ञान पैदा हुई थी, लेकिन समय के साथ ऋषियों ने यह समझ लिया कि
मनुष्य विज्ञान से केवल उलझेगा, सुलझेगा नहीं।
विज्ञान अगर साधन बन जाए तो अत्याचार और अशांति लाएगी,
क्योंकि शक्ति की आँखें नहीं होतीं।
रावण के पास भी बड़ी विज्ञान थी, पर सुख नहीं था।

आज की विज्ञान भी वही है – खोज ज़रूर करती है,
परन्तु सुख नहीं देती।
सुख तभी संभव है जब आत्मा और शरीर दोनों का संतुलित विकास हो।
बिना आत्मिक विकास के जीवन अंधकार है –
बाहर स्वर्ग-सा दिखेगा, लेकिन भीतर नर्क, अशांति और दुःख भरा होगा।

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भीतर की ऊर्जा – अनंत संभावनाएँ

इसलिए जड़-सुविधा एक हद तक ठीक है,
पर उतनी ही विज्ञान विकसित होनी चाहिए जितनी आत्मिक विकास हो।
क्योंकि ईश्वर और यह जीवन – दोनों भीतर ही हैं।

विज्ञान कहती है: एक परमाणु में अपार ऊर्जा है।
आध्यात्मिकता कहती है:
हमारे श्वास, भोजन, पानी में भी अपार ऊर्जा है –
हम कितनी संभावना भीतर ले रहे हैं।
यदि मनुष्य इसे समझ ले, अनुभव ले, तो उसका प्रफुल्लित होना अवर्णनीय होगा।

परमाणु छोड़िए –
भीतर वीर्य की एक बूंद के आनंद को ही मनुष्य सह नहीं पाता।
तब अनंत का बोध कैसे संभव होगा?
यौन-सुख अनुभव घटाता है,
या वहां व्यक्ति अपने-आप में टूटता है।
इस टूटने, अलग होने का बोध ही प्रमाण है कि
भीतर अन्य सूर्य मौजूद है –
सेक्स तो केवल एक किरण है।

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आत्मा-बोध – ‘मैं’ की सीमा

प्रश्न उठता है –
जिस ‘मैं’ से हम चिपके बैठे हैं, उससे यह बोध संभव नहीं।
उसकी औक़ात नहीं है आत्मा का बोध करने की।
तभी आत्मिक विकास चाहिए।
सत्य, अनंत, ब्रह्म – जब भीतर बोध हो जाता है
तो फिर न त्याग बचता है, न पकड़।
क्या तुम्हारा? क्या मेरा?
सब उसी का है।

तब मंदिर, शास्त्र, ईश्वर – सब कुछ वही हैं।
हम नहीं, हम केवल साक्षी हैं।
तुम ही सब कुछ हो।

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आज का धर्म – आँखों पर पट्टी

आज का धर्म क्या सिखा रहा है?
विश्वास, श्रद्धा, आशा, स्वप्न…
हमारा अतीत ज्ञान-बोध था,
और आज हमारे धार्मिक कहाँ खड़े हैं?

क्या हमारे धार्मिक ज्ञान दे रहे हैं?
शास्त्र के अतीत से यह स्पष्ट है –
आज का धर्म अंधा है।
तब सामान्य इंसान क्या करेगा?
धर्म उसके भीतर क्या भर रहा है?
क्यों ज्ञान दे रहा है?
उसके आत्मिक परिणाम क्या हैं?
इसके प्रमाण सामने हैं।

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धार्मिक कृपा – झूठ का मुखौटा

कहाँ आत्मा-परमात्मा और कहाँ आज के धार्मिक रक्षक?
कितनी दूरी है आत्मा और ईश्वर के बीच।
धार्मिकों की “कृपा” की झलक उनके भक्तों में साफ दिखाई देती है।
उनके स्वभाव, उनके विचार, उनकी मांग और उनकी इच्छाएँ – सब यही दिखाते हैं कि
धर्म का आशीर्वाद और कृपा आज किन रूपों में उतर रही है।

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धर्म का परिणाम – अधर्म की खेती

परिणाम सामने है –
आज की दुनिया में धर्म का असर स्पष्ट झलकता है।
विज्ञान शिक्षा दे रही है, विज्ञान विकसित हो रहा है।
लेकिन धर्म और धार्मिक क्या दे रहे हैं?
संस्कार नहीं, आत्मा-विकास नहीं।
इसके बजाय मनुष्य के भीतर भ्रांति और बंधन ही भर रहे हैं।

यह केवल किसी एक धर्म की बात नहीं है,
विश्व के सभी धर्मों की दिशा और दशा यही हो गई है।
धार्मिकता का परिणाम ठीक विपरीत दिखाई दे रहा है।
आज समाज में चोरी, भ्रष्टाचार, बलात्कार, दंगे, लूट –
इन सबके पीछे भी धर्म-आधारित मानसिकता की छाया है।
क्योंकि धर्म को राजनीति और विज्ञान से ऊपर स्थान दिया गया,
और धर्म ने क्या उपजाया?
अशांति और अधर्म।

राजनीति और विज्ञान इतनी अनैतिक शिक्षा नहीं देते
जितनी धर्म के नाम पर फैली हुई है।
सोचने की बात है –
इन धार्मिकों का असली चरित्र क्या है?
खुद जो लोग समाज के ‘रक्षक’ कहलाते हैं,
वही आए दिन चोरी, खून, बलात्कार और भ्रष्टाचार में पकड़े जाते हैं।

मतलब यह कि जिन्हें धर्म, राजनीति और विज्ञान से भी उच्च समझा गया –
उन धार्मिकों की दशा आज बिल्कुल उजागर हो चुकी है।
उनकी आड़ में समाज का पतन ही बढ़ रहा है।

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धर्म की नग्नता – परिणाम स्पष्ट

किसी साधारण व्यक्ति से आत्मा-परमात्मा पर प्रश्न करो –
उनकी बकवास स्पष्ट कर देती है
कि आज का धर्म किस दिशा में जा रहा है।

ज्ञान पूरा बकवास-सा बन गया ह

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