हम बड़े हो गए
वक़्त के साथ ख्वाहिशें भी थम जाती हैं,
कुछ पूरी हों भी जाएँ, तो मासूम-सी हँसी कहीं गुम हो जाती है।
यहीं लगता है—हाँ, अब हम बड़े हो गए।
कभी Nokia 160 में गाने भरवाने का शौक था,
FM की धुनें ही हमारी रूह का सुख थीं।
नीलेश मिश्रा की कहानियों में खुद को ढूँढ़ते थे,
और रेडियो पर अचानक अपना पसंदीदा गीत सुन लेना—
मानो पूरी दुनिया हमारी हो जाती थी।
आज हाथों में iPhone है,
लेकिन दिल के अंदर वो झिलमिल खुशी अब नहीं मिलती।
तो लगता है—हाँ, अब हम बड़े हो गए।
गुज़रे कल की यादें अब सहारा हैं,
कभी-कभी उन लम्हों को जी लेना भी इबादत है।
मगर इस भागते दौर में ठहरकर
उस बीते कल की झलक देखने का वक्त किसके पास है?
तो लगता है—हाँ, अब हम बड़े हो गए।