🔥 नारी का एलान 🔥
नारी को ही सिखाना है, नारी को,
कि तुझे कभी हारना नहीं है।
लेकिन नारी ही नारी को सिखाती है—
वो बातें जो ज़रूरी भी नहीं।
कितना दोगलापन है!
तू खुले आसमान में उड़ सकती है,
पर तेरी उड़ान की डोर अक्सर
किसी और के हाथ में थमा दी जाती है।
नारी को सब कुछ सिखाया जाता है—
खाना बनाना, घर चलाना,
ऑफिस में काम करना, रिश्ते निभाना…
पर हर जगह सिखाया जाता है:
"चुप रहो।"
आख़िर क्यों?
बड़े गलत हों, पर बच्ची बोल नहीं पाती।
“बेटा, वो बड़े हैं—बड़ों से ऐसे बात नहीं करते।”
रिश्तेदार ने हाथ उठाया—“वो बड़े हैं।”
अपमान हुआ—“छोड़ दो, वो बच्चे हैं।”
ससुराल वालों के ताने—“ये उनका अधिकार है।”
क्यों नहीं सिखाते अपनी बेटियों को
अपने लिए खड़ा होना,
अपने लिए लड़ना?
हर जगह पापा नहीं आएंगे,
न माँ, न भाई।
तो फिर बचपन से ही क्यों न सिखाओ
कि अगर कोई ग़लत बोले—
तो सहना नहीं है।
जवाब देना है।
पहली बार में ही उसे रोक दो,
ताकि हिम्मत न हो दोबारा करने की।
जहाँ सम्मान पर बात आए,
वहाँ चुप्पी मत साधो।
अपने सच, अपने आत्मसम्मान के लिए
बेबाक होकर लड़ो।
याद रखो—
अगर तुम अपनी इज़्ज़त नहीं करोगी,
तो और कोई भी नहीं करेगा।
मत सिखाओ बेटियों को
हर बात पर हाथ जोड़ना।
सिखाओ कि अगर कोई हाथ उठाए,
तो वो हाथ तोड़ देने का हक भी रखती हैं।
चाहे सामने पति हो, दोस्त हो या भाई—
अन्याय के सामने झुकना बंद करो।
नारी ही वो शक्ति है,
जो जनम देती है—
और ज़रूरत पड़े तो अन्याय मिट्टी में मिला देती है।
तेरी चुप्पी किसी का हक़ नहीं,
तेरी आवाज़ ही तेरा अस्त्र है।
तेरा आत्म-सम्मान किसी रिश्ते से बड़ा है।
उस पर कोई समझौता मत कर।
नारी,
अब तू डरना छोड़ दे।
अब तू झुकना छोड़ दे।
अब तू लड़ना सीख।