समंदर सी हमारी ज़िंदगी है,
उसमें अथाह सा खारापन है।
कभी बेतहाशा लहरें भी उठती हैं,
कभी उसमें ज्वार भाटा भी आता है।
कभी गहराई में सन्नाटा उतरता है,
कभी तूफ़ान सब कुछ डुबो जाता है।
कभी किनारे पे रेत का महल सजता है,
तो कभी लहरें उसे पल में मिटा जाती हैं।
कभी चमकती धूप पानी पे सोना बरसाती है,
कभी बादल सब कुछ अंधेरा कर जाते हैं।
कभी नाव किनारे पहुँच कर चैन देती है,
तो कभी भटक कर राह भुला जाती है।
समंदर की यही आदत है,
हर पल नया रूप दिखाता है।
और ज़िंदगी भी वैसी ही है,
कभी रुलाती है, कभी मुस्कुराती है।
Tripti Singh