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khwahishh

khwahishh

@poojaahirwar021932
(1)

अब आंखेँ भी बरसने से इंकार कर रही है।
कोई नई सुबह देखने का इंतजार कर रही है।
ये हवा ये बादल ये फिजा क्यों नहीं मिलती है,
एक दूसरे से इसकी बजह तलाश कर रही है।
ये धड़कने नये मौसम का एतबार कर रही हैं।
- khwahishh

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भीगी पलकें बादलो से न बरसने की बजह पूंछती है।
कब लोटेंगी बो बहारे पतझड़ से होके गुजरती हवाएं पूंछती है।
गुल से गुलिश्तां तक के सफर की जो दास्तां जमाने भर में मशहूर थी।
नजर आ जाए कोई पुराना नजारा तरसती निगाहों की है गुजरी बहारों से,
बो कब दोहराई जाएंगी कहानियां ये फिजा पूंछती है।
- khwahishh

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आसमान नए नजारे ढूंढने निकला है।
बिच समंदर में किनारे ढूंढने को निकला है।
जिस बंजर जमी पे एक सूखा पत्ता नहीं बचा,
उस जमी पे नई बहारे ढूंढे निकला है।
कल तक थी लगी रोनके जिन चोबारों पे,
आज देखो बो चोराहे बने दिखते है।
कोई समझाओ इस बाबरे आसमान को,
ये शहर की पक्की सड़कों पर पुराने गलियारे ढूंढ़ने निकला है।
- khwahishh

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टूट कर बेजार हुए पैमाने मे,
कौन सा जाम टिकता है।
कोई मुझे बताये की टुटा हुआ शीशा,
किस बाजार मे बिकता है।
और कोई तो दे पता मुझे उस हकीम का,
जो टूटे हुए दिल को, सुई से सिलता है।
- khwahishh

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आफत - ऐ - मुहाल जिंदगी का जाने अंजाम क्या लिखा है। उस खुदा ने लकीर - ऐ - किस्मत मे जाने किसका नाम लिखा है।
- khwahishh

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मैं चंद लम्हे चुराके बक्त से तेरे नाम करना चाहता हूं।

आसमान से लेकर थोड़े से सितारे तेरे आंचल मे भरना चाहता हूं।

तूने जितनी ख्वाहिशे छोडी है मेरे लिए सब पूरी करना चाहता हूं।

मुझे अपनी दुनिया बनाया है तुमने तुम्हे दुनिया अपनी बनाना चाहता हूं।

तू ही कहती है मुझे हक है आसमानो को छूने का,

मे तुझे अपनी उड़ान मे शामिल करना चाहता हूं।

ने चंद लम्हे चुरा के बक्त से तेरे नाम करना चाहता हूं।

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हर कुबूल सजा करते है,
तेरी ख्वाहिश के लिए,
पर जरा ये तो बता बेवफा,
तूने क़ब्र कहाँ खोदी है,
मेरे दफ़न के लिए।
- khwahishh

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" कितनी दफा ये दिल टुकड़े टुकड़े हुआ है,
तब कहीं जाके ये शीशे से पत्थर मे,
तब्दील हुआ है। "
- khwahishh

मैं शुक्र करूं तेरा ए खुशी या शिकायत गम की कर दूँ।
उलझन में हूं बस इतनी,की!
है किसकी खता और मैं सजा किसको दूं।
तेरे आने की खुशी तो गम की वजह से ही है मिली,
और तेरे जाने की वजह भी है वही।
- khwahishh

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चाँद आज भी पूरा देखा आसमान मे,
बस मलाल ये था हम दोनों को।
की आज भी अकेला देखा,
मेने उसे और उसने मुझे।
- khwahishh