मेरे घर मै एक खिड़की है,
मुझे वो बड़ी चुनौतियां देती है।
कहती है इन चार दीवारों मै,
कैसे बस गई, तू देखने आई थी दुनिया
वही थम गई।
मेरे घर वो खिड़की मुझे देखकर हंसती है।
ना जाने क्यों वो शायद,
मुझसे जलती है।
दुनिया तो बड़ी प्यारी दिखाई देती है।
जब वो नई किरण मेरे बंद आंखों
पर आ गिरती है।
कभी कभी वो मेरी आंख बनती है ।
मै जो चार दिवारी से ना देख पाऊं
वो सब मेरे पास लाकर रखती है।
पर ना जाने क्यों वो रोज मुझे देखकर हंसती,
शायद वो देखती होंगी,
हताश चेहरा, थका शरीर, रोती आंखे।
शायद इसीलिए वो मेरी टांग खींचती है ।
मेरे घर की वो खिड़की मुझे रोज देखती है
~chanchal