आ बैठ पास कुछ गुनगुनाते हैं,
हाल-ए-दिल क्या है तुम्हें बताते हैं।
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें,
बेचैनियों को ज़रा सुलाते हैं।
तन्हाई का ये आलम अजीब है,
आओ, एक-दूजे में खो जाते हैं।
जो दर्द दबा है इन साँसों में,
आँखों से आज छलकाते हैं।
इश्क़ का ये रंगीन समां है,
चलो, दुनिया को भुलाते हैं। राजेश कालिया