Hindi Quote in Good Morning by Dhananjay Singh

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🌟 कविता: विश्वास की लौ

— धनंजय सिंह

अनल का प्रकाश बन तू अंधकूप में,
चमक तू हीरे-सा तेज़ धूप में।
है साथ तेरे ईश्वर हर स्वरूप में,
कर कर्म अच्छा, जन्म मिला है मनुष्य रूप में।

तू कर सकता है, करेगा — कर के ही रहेगा,
फिर देख, तेरी धमनियों में गर्व बहेगा।
क्यों बैठा चुप है? मन की बात कब कहेगा?
तू मौन रहकर भी, दुख ही सहेगा।

सफलता की इमारत तुझसे दूर खड़ी है,
पर तेरे रास्ते में मुश्किलें बड़ी हैं।
बन लोह-श्रृंखला परिश्रम की कड़ी में,
ना खोना होंसला मुश्किल की घड़ी में।

न बीता बचपन तेरा किसी अभाव में,
तो क्यों घमंड भर गया नेक स्वभाव में?
संभाल चप्पू तू परिश्रम की नाव का,
बन जा सागर, नदी के बहाव का।

जब परिश्रम करके भी सफलता न आए,
जब बनती-बनती बात भी बिगड़ जाए।
बनकर साहसी, होंसला न तू खोए,
फिर देख, तेरा प्रतिद्वंदी आंख मूंद कर रोए।

जब मन न लगे तुझे किसी भी काम में,
दुख ही दुख दिखे हर आराम में।
तो याद करना लक्ष्य तेरा जहान में,
फिर जाएगा आराम, हराम में।

तुकबंदी कब कविता बन जाए, कौन जानता?
हारा हुआ खिलाड़ी कौन पहचानता?
यदि तुममें है यकीन, मैं गलत नहीं मानता,
फिर अपरिचित भी कहेगा — "मैं तुम्हें जानता।"

अर्थ व्यर्थ में ढूंढकर बात न बिगाड़,
जो नाराज़ हैं, उन्हें न कोई मनाए बार-बार।
मन बड़ा चंचल है, कोई इसे कैसे समझाए?
धनंजय व्यर्थ ही तुझे दिल की बात सुनाए।

और अंत में कहूँगा — न जग में किसी से डरूंगा,
है मुझमें विश्वास — कर के दिखाऊंगा।
अपनी उपलब्धियाँ किसी को न गिनवाऊँगा,
इस बात को मैं अवश्य अमल में लाऊँगा।

— धनंजय सिंह

Hindi Good Morning by Dhananjay Singh : 111985376
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