कुछ बात थी उस ख़ामोशी में…
कुछ बात थी उस ख़ामोशी में,
जो हर शोर से गहरी उतरती गई।
ना कोई सवाल था, ना जवाब माँगा,
फिर भी आँखों ने बहुत कुछ कह दिया।
वो एक नज़र, जो ठहरी नहीं,
फिर भी मन के किसी कोने को छू गई।
जैसे किसी पुराने ज़ख्म पर
बिना कहे कोई मरहम रख गया हो।
उसने कुछ नहीं किया,
बस मौजूद था।
जैसे किसी तूफ़ान में एक पेड़,
जो झुका तो सही,
मगर टूटा नहीं।
और वो लड़की…
जो अक्सर अपने मन से लड़ती थी,
आज चुपचाप चल पड़ी है उस रास्ते पर
जहाँ डर अब भी है—
मगर उससे लड़ने की हिम्मत भी।
क्योंकि किसी ने कुछ कहे बिना
ये यक़ीन जगा दिया है—
कि वो टूटी नहीं है,
बस थोड़ी सी बिखरी हुई है,
और बिखरने के बाद ही तो
इंद्रधनुष बनते हैं।