हो सके तो नदी को बहने दो
सौ- दो सौ मील नहीं
हजारों मील दौड़ने दो।
पर्वत में वह गूँजेगी
माटी को सींचेगी,
कुछ साल नहीं
युग-युग तक उसे निकलने दो।
हो सके तो भारत की भाषा ले लो
दस-बीस साल के लिए नहीं
अविरल गंगा की धारा सी अमर रहने दो।
हो सके तो वृक्षों को रहने दो
दस-बीस साल नहीं
जीवनपर्यन्त फलने दो।
हो सके तो मिट्टी को देशज कर दो
केवल नारों में नहीं
मन में अवतरित होने दो।
*** महेश रौतेला