शाम को यूँ तेरी पलकों को लरज़तें रहना,
डूब जाये ये मंज़र तो बरसते रहना !
मैं अगर टूट भी जाऊ तो फ़क़त आईना हूँ,
तुम मेरे बाद भी हर रोज़ संवरते रहना !
उसकी आदत वही हर बात अधूरी करना,
और फिर बात का मफ़हूम बदलते रहना !
आज से सीख लिया हैं ये क़रीना हमने,
बुझ भी जाये तो बड़ी देर सुलगते रहना !
जाने किस उम्र में जायेगी ये आदत अपनी,
रूठना उससे तो औरो से उलझते रहना !
hardik🫂