मैं और मेरे अह्सास
यादों की महक
यादों की महक से जीस्त का रोम रोम सुगंधित हो उठा हैं l
प्रेम भरे अविरत झरनों से तन मन पुलकित हो उठा हैं ll
प्यार भरे लम्हों की याद आते ही एक कसक हो रही ओ l
जल्द मुलाकात का आश का दिपक प्रज्वलित हो उठा हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह