Hindi Quote in Poem by NR Omprakash Saini

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"रातों रात उजड़ गया सपना"

चाँदनी रात थी, चुप थे सितारे,
400 एकड़ सपने कटे एक इशारे।
कराह उठी मिट्टी, बिलख उठे पेड़,
किसने सुनी उनकी टूटी पुकारें?

चुपचाप आए थे, मशीनों का शोर था,
हर तने की चीख में दबा कोई ज़ोर था।
कटते रहे बृक्ष जैसे साँसें टूटतीं,
धरती की छाती पे नमी सी छूटती।

किसके लिए ये उजाड़ा गया घर?
किसके सपनों ने छीना ये सफर?
भूल गए हम कि जड़ें ही आधार थीं,
जिन्होंने सँभाली थी सदियों की धार थीं।

अब धूल उड़ती है उन पगडंडियों में,
जहाँ कल तक हरियाली मुस्कुराती थी।
अब सन्नाटा है, एक सिसकती सी हवा,
जहाँ कल तक कोयल मीठा गीत गाती थी।

ओ इंसान!
तेरी तरक्की की ये कैसी कीमत है?
किसी की धड़कनों की राख पे तेरा महल है।
जो जड़ें कट गईं, वो साया भी छूटेगा,
कल जब जल बुझेगा, तू किसे रोएगा?

Hindi Poem by NR Omprakash Saini : 111974071
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