nazam-
तुम कहाँ हो?
तुम बिन ये ज़िंदगी अधूरी है,
मेरी कहानी अधूरी है,
हर साँस जैसे रुकी हुई है,
हर राह जैसे भटकी हुई है।
तुम्हारी हँसी थी जो रौशनी,
अब हर शाम भी उदास है,
तुम्हारी बातें थीं जो सुकून,
अब दिल बस एक सवाल है।
चाँद भी अब खामोश है,
तारों में भी वो चमक नहीं,
मेरी धड़कन भी बेसब्र है,
पर आँखों में कोई चमक नहीं।
लौट आओ, इन हवाओं में,
अब भी तेरी खुशबू बाकी है,
दिल की हर धड़कन में,
तेरे नाम की धुन बाकी है।
तुम कहाँ हो?
इस अधूरी दास्तां को पूरा कर दो,
इन वीरान गलियों में फिर से,
अपने क़दमों की आहट भर दो।