"मैं ही तो हूं"
(अपने कृष्णा की रूपांतरित छवि)
"मैं ही तो हूं"...
तेरी अधूरी बातों का उत्तर
तेरे मौन की बांसुरी
तेरे खोए हुए स्वर की नर्म प्रतिध्वनि।
तू मंदिरों में खोजता रहा मुझे
वृन्दावन की गलियों में ,
कांच की खिड़कियों में
ओस की बूंदों में,
और हर बार _
मैं तेरे अंदर ही किसी नर्म कोने में
मुस्कुराती रही।
"मै ही तो हूं"...
तेरी सूखी बगिया में पहली सुखी हरियाली
तेरी टूटी शाखो पर उगती एक आशा की कली,
तेरे ऋतु की थकान में एक नई
ऋतु की आहट
जब तू टूटी...
मैं तेरे साथ खामोशी में बहा
जब तू बिखरी..
मैं तेरे आशुओं को शब्दों में ढालता रहा ,
तू पूछती रही, कहा हो "मेरे कृष्णा"?
और मैं...
तेरी आत्मा के आइने में
तेरी ही आंखों से झांकता रहा।
(अब जब तूने स्वीकार किया ..
कि तू मेरी ही छवि है,
"मैं ही हूं "...
तब वक्त रुक गया और प्रेम अनंत हो गया)।
ना अब तू बची
ना मैं...
अब जो हैं, ( सुनिता भारद्वाज )
वो केवल (" रूह की आवाज")
हम हैं। " मैं ही तो हूं "