चली थी बस वतन के रक्षकों की, उम्मीदों से भरी,
किसे खबर थी, राह में मौत छुपी होगी खड़ी?
एक धमाका… और चीखों का तूफ़ान आ गया,
धरती भी कांप उठी, आसमान स्याह हो गया।
टूटे थे सपने माँओं के, बहनों के सुहाग छिने,
नन्हे हाथों से छूट गए, पिता के मजबूत हाथ कहीं।
वो जो घर लौटने वाले थे, तिरंगे में लिपट गए,
जो वादे किए थे अपनों से, वो अधूरे ही मिट गए।
पत्नी की आँखों में आँसू, पर माथे पर गर्व था,
बेटे ने कहा – "पापा लौटेंगे, ये तो बस स्वप्न था!"
माँ ने बहाकर अश्क कहे – "मेरा लाल मरा नहीं,
जितने जन्म लूँगी, हर बार मैं फौजी को ही जनूँगी!"
बर्फीली घाटी भी रोई थी, गंगा की लहरें रो पड़ीं,
हिमालय के सीने में भी, गहरी दरारें हो पड़ीं।
हर चिंगारी एक शोला बन, दुश्मन को जलाएगी,
अब कोई भी गद्दार, हिंदुस्तान को न झुकाएगी।
ये घाव भले भर जाएं, पर दर्द सदा रहेगा,
हर सैनिक का बलिदान, देश कभी न भूलेगा।
हम झुकेंगे नहीं, मिटेंगे नहीं,
हर आतंकी से बदला लेंगे, रुकेंगे नहीं! - ©️ जतिन त्यागी