उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 34 की
कथानक : इस बार के मुख्यमंत्री ईमानदारी और मेहनती अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर देखना चाहते थे। मुख्यमंत्री के निर्देश पर ऐसे अधिकारियों की सूची बनी, उसमें प्रथम गिने-चुने व्यक्तियों में कविता का नाम भी था। मुख्यमंत्री ने ऐसे लोगों को व्यक्तिश: उनके पसंद के जिले में जिला स्तर पर लगाने हेतु बुलाया।
कविता ने झिझकते हुए कहा कि वह तो सर्विस छोड़कर ग्रामीण बच्चों का स्तर सुधारना चाहती है जिसका भवन एक वर्ष में बनकर तैयार हो जाएगा। मुख्यमंत्री ने उसे एक वर्ष तक वहाँ जिला कलक्टर के पद पर काम करने को कहा। यही नहीं, कविता के अनुरोध पर वे राधोपुर गाँव को आदर्श ग्राम बनाने को राजी हो गए।
कविता ने खूब मेहनत कर मुख्यमंत्री जी का दिल जीत लिया और उन्होंने राधोपुर ग्राम में स्कूल के साथ प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र तथा स्टेडियम का उद्घाटन करने की तिथि निश्चित कर दी।
कविता ने इस बीच स्वयं मुख्यमंत्री की चाहत पर फिलहाल रमन व अपने माता-पिता की भी मंशा पर नौकरी छोड़ने का विचार त्याग दिया क्योंकि स्कूल का काम तो रमन खुद सँभाल सकता था।
स्कूल के लिए अनुदान कविता के पिता द्वारा दिया गया था। रमन ने भी वहाँ कविता के माता-पिता का मन जीत लिया था।
मुख्यमंत्री जी ने उद्घाटन के लिए पहुँचकर अपने भाषण में भी कविता की खूब सराहना की। उद्घाटन के बाद कविता तो मुख्यमंत्री जी के साथ प्रोटोकॉल के तहत चली गई लेकिन सभी ग्रामवासियों के समक्ष उसके पिता ने कविता के साथ रमन की सगाई की घोषणा कर दी तो सबकी खुशी की सीमा न रही क्योंकि रमन के त्याग और पहल पर ही राधोपुर गाँव का इतना विकास संभव हुआ था। वहाँ हर्ष के बीच केहर सिंह ने सबके बीच कहा कि कन्यादान तो मैं ही करूँगा।
उपन्यासकार ने इस अंक को भी सकारात्मकता से भरकर पाठकों को आनन्दित कर दिया। इसी अंक में उपन्यास के भविष्य की नींव रखने की रूपरेखा तैयार हुई है। जैसे- कविता के मम्मी-पापा का राधोपुर आना तथा स्कूल के निर्माण हेतु राशि उपलब्ध कराना, उनको गाँव वालों की आत्मीयता के साथ रमन के लिए खुशी-खुशी स्वीकारोक्ति, कविता का मुख्यमंत्री की पहल पर सर्विस न छोड़ने का निर्णय करना।
यहाँ प्रस्तुत हैं, नये ईमानदार मुख्यमंत्री व कविता के बीच संवादों के कुछ अंश:
- 'एक पिता को अपनी संतान से क्या अपेक्षाएँ होती हैं? यही न कि वे बड़े होकर उसका सिर गर्व से ऊँचा करें। मिस कविता! तुम मेरी बेटी के समान हो। मेरी जिम्मेदारियों को निभाने का कुछ बोझ तुम पर भी है। जहाँ तक मुझे ज्ञात है, लोगों में मेरी सरकार की कार्यप्रणाली और उपलब्धियों को लेकर एक सकारात्मक सोच बनी है। मैं उसे बनाए रखना चाहता हूँ। यह तभी संभव है यदि तुम जैसे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों का सहयोग मुझे मिलता रहे। इसलिए मैं तो कहूँगा तुम जल्दबाजी में कोई निर्णय मत लो। वैसे मुझे भी तो पता चले कि तुम नौकरी किसलिए छोड़ना चाहती हो?'
- 'सर, मैं स्कूल के माध्यम से जनता की सेवा करना चाहती हूँ। गाँव के बच्चे शिक्षा में पिछड़ जाते हैं। मैं उनको दूसरों की बराबरी पर लाने का प्रयास करूँगी, ताकि शिक्षा की असमानता को समाप्त किया जा सके।'
- 'अच्छा प्रयास है। परन्तु कितनों का भला होगा? अधिक से अधिक पाँच-दस गाँवों का, बस। राज्य में कितने गाँव हैं? जहाँ पर तुम हो, वहाँ से सैंकड़ों-हजारों गाँवों का भला किया जा सकता है। इस असमानता को कौन दूर करेगा?' (पृष्ठ 596-97)
इसमें कोई शक नहीं कि राधोपुर का कायाकल्प हो रहा है और उपन्यास की बुनियाद निश्चित आकार ले रही है।
समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
8.1.202