उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 33 की
कथानक : राधोपुर गाँव की घटना से सम्बन्धित जाँच की संचिका जिला प्रशासन के आग्रह पर कविता को सौंपी गई थी अत: कविता ने केहर सिंह को निर्देश दिया कि वह निर्धारित तिथि को लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह में जाँच के मामले में प्रस्तुत हो।
केहर सिंह विश्राम गृह पहुँचा तो कविता ने उसे चाय पिलाई तथा अपनेपन से कहा कि वह सच्चाई से न भागे क्योंकि सच का साथ भगवान भी देता है। यदि वह ऐसा करेंगे तो वह उनका पूरा साथ देगी। इससे केहर सिंह पिघल गया और बोला कि वह भी अब गलत मार्ग पर चलते हुए थक चुका है और शाँति चाहता है। कविता ने कहा कि दोनों पक्ष चाहें तो आपस में समझौता करके मुझे लिखित में दे सकते हैं कि वे सरकार की ओर से इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं चाहते।
केहर सिंह ने कविता से कहा कि वह माफी चाहता है कि आपको अब तक गलत समझता रहा।
कविता ने केहर सिंह को कहा कि वह गाँव में एक एकड़ जमीन खरीदना चाहती है। केहर सिंह खुश हो गया और इसके लिए कविता को शीघ्र बात करके अवगत कराने की बात कही।
केहर सिंह ने सचमुच बुराई का रास्ता छोड़ दिया था और अब वह सबको कविता की प्रशंसा करते नहीं थकता था। उसने कविता की अभिलाषा अनुसार माधो से जमीन को लेकर बात की। वह और ननकी तैयार हो गए क्योंकि यह जमीन परोपकार हेतु ली जा रही थी। अन्तत: माधो के साथ ही केहर सिंह ने भी अपने एक हजार वर्ग गज के भूखण्ड को प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र के नाम पर हस्तान्तरण करने के इंद्राज संबंधित रजिस्टर में दर्ज करवा दिए।
उपन्यासकार ने इस लंबे अंक में पूर्व में बुराई के प्रतीक खलनायक केहर सिंह का हृदय परिवर्तन दिखाया है जो कविता के कारण ही संभव हो पाया क्योंकि वह अब इस सिद्धांत पर काम करने लगी थी कि बुराई पर जितना चाबुक चलाया जाए, वह उतनी ही अधिक नासूर बनकर उभरती है। जबकि दयालुता के दो शब्द भी उस नासूर को मिटाने के लिए मरहम का काम करते हैं।
प्रस्तुत है, केहर सिंह के हृदय परिवर्तन को दर्शाते अंश:
- 'भाई, मैं आज जाँच के सिलसिले में शहर गया था। जाँच अधिकारी वही लड़की है जो पहले यहाँ पर एसडीएम हुआ करती थी। बहुत नेक और बुद्धिमान अधिकारी है। मुझे तो साक्षात किसी देवी का अवतार लगती है। लगे भी क्यों न, उसकी बातों का मुझ पर ऐसा जादू चढ़ा जिसे बतलाने की जरूरत नहीं है। सब कुछ आपके सामने है। काश! मैं उसे पहले समझ पाता तो इतनी देर न होती।' (पृष्ठ 557)
- 'बहुत लंबे अर्से से इस गाँव को आपसी नफरत का ग्रहण लगा हुआ था। परन्तु एक दिन अंत तो हर एक चीज का लिखा हुआ है। केहर सिंह भाई आज हमारे बीच में है।हमें पिछले सभी कटु अनुभवों को भूलकर गाँव के हित में नए सिरे से पहल करनी होगी। एक और एक मिलकर ग्यारह होते हैं। इसी तरह केहर सिंह के साथ आने से हमारी सोच, हमारी क्षमता और हमारा हौंसला भी दोगुना हो गया है।' (पृष्ठ 559)
- 'भाइयो! मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा है। इतना कुछ होते हुए भी आपने मुझे माफ कर दिया। शायद इस जन्म में मैं इसका ऋण न उतार सकूँ। जीवन में नैतिक मूल्यों की कमी और कुसंग का प्रभाव, दो ऐसी बलाएँ हैं जो इंसान को हैवान बना देती हैं। मैं भी इनसे अछूता नहीं रहा। अब जब होश आया तो मालूम हुआ कि पाया कम और खोया अधिक है। उस खोई हुई अमूल्य सम्पदा को पुन: पाना चाहता हूँ, जो आपके सहयोग के बिना असम्भव है।' (पृष्ठ 561)
लेखक ने जीवन के संघर्षों के बाद अब इस अंक से निगेटिव लोगों को भी सकारात्मकता की ओर धकेला है जो उपन्यास को सुखद अंत की ओर ले जाएगा। हालांकि उस चरम बिंदु पर पहुँचने के लिए हमें 42 अंकों तक पहुँचना होगा।
समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर