Hindi Quote in Book-Review by Kishore Sharma Saraswat

Book-Review quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 32 की

कथानक : राजू बैंक में ड्यूटी ज्वाइन करने शिमला पहुँच गया जहाँ उसे मकान भी किराए पर मिल गया तो अब अपनी पत्नी जयवंती यानी रमन की बहन को लेने शिमला से वापस आया। इस बार उसके घर पर दिल्ली में मेडिकल की पढ़ाई कर रही उसकी बहन रंजना को भी बुला लिया था। दूसरे दिन वह पत्नी को लाने अपने ससुराल गया और फिर उसके साथ शिमला।
राजू, रमन को भी कुछ दिनों के लिए शिमला ले जाना चाहता था लेकिन अगले सप्ताह न्यायालय में रमन की पेशी होने से उसका जाना टल गया।
रमन को पेशी में दोषमुक्त कर दिया गया था। अब पाठशाला को पुन: चालू करने से पहले अपने साथियों की सहमति लेकर रमन थोड़े समय के लिए शिमला के लिए रवाना हो गया जहाँ वह शाम होते-होते पहुँच गया।
अगले तीन दिनों में रमन शिमला के दर्शनीय स्थलों को देखने के बाद जयवंती के आग्रह पर संजौली में स्थापित देवी माँ के मंदिर में जाने का प्रोग्राम बना।
रमन हैरान रह गया क्योंकि मंदिर के प्रांगण में कविता अपनी मम्मी के साथ दिखाई दी। वहाँ जिस तरह मृदु वाणी में रमन व कविता में संवाद हुआ, उससे कविता की मम्मी सुशीला के मन में दोनों को लेकर शंका हुई।
सुशीला ने उन सबको अगले दिन घर आने का न्योता दिया। सुशीला ने रमन व उसके परिवारजनों का विवरण जाना। जयवंती ने भी उन्हें घर पर आमंत्रित किया।
दो दिन बाद जयवंती व राजू को बैंक की एक पार्टी में जाना था। राजू घर पर ही रहा। कुछ ही देर में कविता अकेले रमन के यहाँ पहुँच गई। उनके बीच पहले मीठी तकरार, गिले-शिकवे फिर भविष्य के बारे में परस्पर गंभीर मंत्रणा हुई। रमन का कहना था कि वह उसके बराबरी का नहीं है। कविता ने कहा कि वह नौकरी छोड़ रही है। रमन ने इसके लिए मना किया तो कविता गंभीरतापूर्वक बोली कि उसने सोच-समझकर ही निर्णय लिया है। मुझे विश्वास है कि मम्मी-पापा भी मान जाएँगे।
इस बीच दो घंटे बीत गए थे। राजू व जयवंती के भी लौटने का समय होने वाला था। कविता जाने को हुई तो जाते-जाते तेज बारिश होने लगी। उसे लौटना पड़ा।
जयवंती खाना बनाकर गई थी जिसे दोनों ने मिलकर खाया। इस बीच दोनों के बीच अपनेपन से भरी बातें हुईं जो बारिश रुकने तक जारी रहीं।
अब कविता को यह कहकर उठना पड़ा कि वह कल एसी बस से जाएगी, सी ऑफ करने जरूर आना।
कविता के जाते ही रमन के बहन-बहनोई आ गए थे।
घर जाकर कविता व उसके मम्मी-पापा की रमन को लेकर बात भी हुई और बहस भी। कविता ने जब उन्हें बताया कि वह नौकरी छोड़कर देहात में शिक्षण कार्य करेगी। अविश्वास और आश्चर्य के बीच उसने पापा और मम्मी को अपने तर्कों से शांत कर दिया।
दूसरे दिन रमन व जयवंती कविता को सी ऑफ करने बस स्टैंड गए थे, तब कविता, रमन को यह कहने में सफल हो गई थी कि उसके मम्मी-पापा का आशीर्वाद उनके साथ है।

*उक्त 59 पृष्ठीय 32 वाँ भाग अब तक का सबसे लंबा किन्तु सर्वश्रेष्ठ बन पड़ा है।* उपन्यासकार की लेखनी का जादू पाठकों के मन-मस्तिष्क पर अपना प्रभाव जमाने में सक्षम है। इस अंक की कई पंक्तियाँ उद्धृत करने योग्य हैं किन्तु समीक्षक की भी अपनी सीमाएँ होती हैं।
यहाँ प्रस्तुत हैं केवल चंद संदर्भों की पंक्तियाँ:
- 'आपके गाँव में कविता नहीं बल्कि राज्य सरकार की एक जिम्मेदार अधिकारी गई थी, जिसका अधिकार क्षेत्र तय करना दूसरों के नियंत्रण में था। कर्तव्यों को रिश्तों की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता है।' (पृष्ठ 533)
- 'मम्मी, सुनो! मेरे सामने दो ही विकल्प हैं। पहला, मैं शादी न करूँ और आपके पास रहूँ। दूसरा, शादी वहाँ करूँ जहाँ मेरी अंतरात्मा मुझे कहती है। फैसला आपको करना है।' (पृष्ठ 543)
- 'पापा, आपके पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं है। क्यों न उसमें से कुछ हिस्सा उस नेक काम में लगा दिया जाए तो अनेकों जिंदगियों के परोपकार के साथ-साथ आपकी पहचान को भी उन लोगों के जीवन में बनाए रखे। पापा, रमन एक बहुत ही बुद्धिमान और नेक इंसान है। मैं उसके साथ मिलकर और आपके सहयोग से गाँव के बच्चों के लिए एक ऐसा स्कूल स्थापित करना चाहती हूँ जिसमें नवीनतम आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा प्रदान करने के लिए सभी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध हों...' (पृष्ठ 544)
- एक प्रतिष्ठित पद को त्यागकर दूरवर्ती देहात में जाकर पुरुषार्थ का कार्य करना त्यागी साधु, महात्माओं का काम होता है। लाड़-प्यार और सभी सुख-सुविधाओं के साथ पली-बढ़ी यह लड़की वहाँ जाकर कैसे खुश रहेगी? (पृष्ठ 544)
- 'मम्मी जी, याद करो, कभी आपने ही कहा था कि एक शिक्षक देश और समाज के उत्थान में अधिक योगदान दे सकता है। आपने यह भी तर्क दिया था कि एक अधिकारी का दायरा सीमित होता है, जो कि उसके अपने विभाग के अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों तक ही सीमित होता है। आपने यह भी कहा था कि एक शिक्षक अपने सेवा-काल में न जाने कितनी भावी प्रतिभाओं के चरित्र निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान देता है। आपने यह भी कहा था कि समाज के निर्माण की चाबी शिक्षक के हाथ में है, न कि प्रशासक के। मैंने आपको वचन दिया था कि अगर मैं अपने लक्ष्य की प्राप्ति में नाकामयाब रही तो अवश्य एक शिक्षक बनकर आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करूँगी। मम्मी जी, वो समय अब आ गया है। मैं अपने काम का दायरा बढ़ाना चाहती हूँ। मैं एक शिक्षक बनना चाहती हूँ।' (पृष्ठ 545)
- 'देखो सुशीला! भगवान, इंसान के भाग्य की लकीर उसी दिन खींच देता है, जिस दिन इंसान धरती पर पैदा होता है। कोई माने या न माने, मैं तो इस उपपत्ति पर यकीन करता हूँ। त्याग की भावना उसी में होती है जो महान होता है। इसलिए हमारे लिए यह समय खुशी का होना चाहिए, न कि पश्चाताप का।' (पृष्ठ 546)
कहना होगा कि इतना वृहद अंक, जो महत्वपूर्ण घटनाओं से ओत-प्रोत है; में एक तरह से लेखक की भी अग्नि-परीक्षा होती है, लेखक ने संवादों, कथोपकथनों, परिवेश के चित्रण सभी में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है। अस्तु, एक प्रकार से उपन्यासकार पाठकों का दिल जीतने में सफल रहे हैं।
अभी उपन्यास की 10 और कड़ियाँ शेष हैं जो 400 पृष्ठों में समाहित होंगी, में भी श्री किशोर शर्मा जी सारस्वत की लेखनी का जादू देखना शेष है।
तो आनन्द लीजिए, उपन्यास के 10 और खूबसूरत अंकों का।

समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर

Hindi Book-Review by Kishore Sharma Saraswat : 111964260
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now