संदर्भ-गीता-३
केशव रथ को हाँको तो
वीर भूमि को देखो तो,
दैवीय इस मुस्कान को
मेरे विषाद से जोड़ो तो।
बन्धु-बान्धव उधर खड़े
मेरे चित्त को घेरे हैं,
तीर चलना व्यर्थ लगे
ऐसे विचार मन में हैं।
मन के घोड़े दौड़ रहे हैं
तुम सारथी बनकर बैठे हो,
नव शरीर में इस जीव का
गमन सदा बताते हो।
मरना यहाँ सत्य नहीं
आत्मा शाश्वत चलती है,
तुम कहते हो,समझाते हो
जिज्ञासा फिर-फिर आती है।
*** महेश रौतेला