रश्क-ए-फ़िरदौस चमन है अपना
हैदराबाद है वतन अपना
निस्बत-ए-गोर-ओ -कफन बेजा हैं
गोर अपनी न कफन है अपना
जीस्त को मर्ग समझते हैं हम
पैरहन है सो कफन अपना
जो वो कहता है वो हम कहते है
दहन- ए-यार दहन है अपना
क्यों न तौफ -ए-दर-ए-महबूब करें
का’बा ऐ क़िबला-ए- मन है अपना
…… मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
- Umakant