मैं और मेरे अह्सास
यादें आने से चमक-दार नज़र आते हैं l
गुल खिलने के आसार नज़र आते हैं ll
रिश्तों की नजाकत जानने लगे हैं कि l
आज दिवाने समझदार नज़र आते हैं ll
महफिलों में उखड़े उखड़े रहनेवाले अब l
मोहब्बत के तरफ़-दार नज़र आते हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह